IARI, पूसा जारी की अगस्त माह की एडवाइजरी, बड़े काम की है ये जानकारी
नर्सरी टुडे डेस्क
नई दिल्ली। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा के वैज्ञानिकों ने कहा है कि किसान कद्दूवर्गीय एवं अन्य सब्जियों की अच्छी खेती के लिए मधुमक्खियों को बढ़ावा दें। इनका खेती में बड़ा योगदान है क्योंकि वे परागण में सहायता करती हैं। इसलिए जितना संभव हो, मधुमक्खियों के पालन को बढ़ाएं। कीड़ों एवं बीमारियों की निरंतर निगरानी करते रहें। कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क रखें और सही जानकारी लेने के बाद ही दवाइयों का प्रयोग करें, अगर फल मक्खी लग रही है तो उससे प्रभावित फलों को तोड़कर गहरे गड्डे में दबा दें ताकि उसका फैलाव न हो।
फल मक्खी के बचाव के लिए ये करें
फल मक्खी के बचाव के लिए खेत में विभिन्न जगहों पर गुड़ या चीनी के साथ मैलाथियान का घोल बनाकर छोटे कप या किसी और बरतन में रख दें। इससे फल मक्खी का नियंत्रण हो सकेगा। कद्दूवर्गीय सब्जियों की वर्षाकालीन फसलों में हानिकारक कीटों और बीमारियों की निगरानी करें। इनकी बेलों को ऊपर चढ़ाने की व्यवस्था करें, ताकि बारिश से सब्जियों की लताओं को गलने से बचाया जा सके। पानी निकास का उचित प्रबन्ध रखें।
उथली क्यारियों में करें रोपाई
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन किसानों की मिर्च, बैंगन व अगेती फूलगोभी की पौध तैयार है, वे मौसम को ध्यान में रखते हुए रोपाई मेंड़ों पर या उथली क्यारियों पर करें। किसान ध्यान रखें कि खेत में ज्यादा पानी खड़ा न रहे। यदि खेत में पानी ज्यादा रह गया तो उसकी निकासी का तुरंत इंतजाम करें ताकि फसल को नुकसान न हो।
इन फसलों की बुवाई का है सही वक्त
पूसा के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए जारी एडवाइजरी में कहा है कि यह कद्दूवर्गीय सब्जियों की वर्षाकालीन फसल की बुवाई करने का सही वक्त है। लौकी की उन्नत किस्में ‘पूसा संतुष्टि’, ‘पूसा नवीन’ और ‘पूसा संदेश’ हैं। करेला की ‘पूसा विशेष’ और ‘पूसा-दो मोसमी’ हैं। सीताफल की ‘पूसा विश्वास’ और ‘पूसा विकास’ हैं। इसी तरह तुरई की किस्म ‘पूसा चिकनी’ और ‘पूसा स्नेह’ हैं। इनकी बुवाई उथली क्यारियों में करें।
गोबर की खाद का ज्यादा करें इस्तेमाल
किसान गोबर की सड़ी गली खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करें क्योंकि यह जमीन की जलधारण क्षमता बढ़ाती है। फसलों में पोटाश उर्वरक का प्रयोग करें इससे फसलों में सूखा सहन करने की शक्ति ज्यादा होती है। कीटों व बीमारियों का प्रकोप भी कम होता है। बारिश को ध्यान में रखते हुए किसानों को सलाह है कि वे अपने खेतों के किसी एक भाग में वर्षा के पानी इकट्ठा करने की व्यवस्था करें। जिसका उपयोग वे वर्षा न आने के दौरान फसलों की उचित समय पर सिंचाई के लिए कर सकते हैं।