Every year this woman distributes 20 thousand medicinal plants for free

प्रतिवर्ष 20 हजार औषधीय पौधे मुफ्त में बांटती है ये महिला

नर्सरी टुडे डेस्क
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ राज्य जंगलों और औषधीय खेती के लिए जाना जाता है। इस राज्य के कई लोग औषधीय पौधों के संरक्षण जैसे महती कार्य में जुटे हैं। इन्हीं लोगों में से एक हैं प्रभाती भारत, जो जगदलपुर से सटे गांव छोटे गारावंड की निवासी हैं। प्रभाती भारत अपने 8 एकड़ के खेत में 100 से अधिक वन औषधि की खेती कर रही हैं। यही नहीं, प्रभाती भारत हर साल सरकारी स्कूलों और पंचायतों में 20 हजार औषधीय पौधे निःशुल्क बांटती हैं।

प्रभाती भारत को औषधीय पौधों और धान की 300 से अधिक प्रजाति के संरक्षण के लिए भाभा रिसर्च सेंटर मुंबई, विलेज बॉटनिक बेंगलुरु, कृषि मंत्रालय भारत सरकार, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने सम्मानित भी किया जा चुका है। प्रभाती भारत छत्तीसगढ़ की ऐसी पहली महिला किसान हैं जो विलुप्त होती जड़ी-बूटी और धान की प्रजाति को बचाने में जुटी हैं।

प्रभाती भारत के अनुसार, उनके खेत में शंकर भोग, लोकटी मच्छी, विष्णु भोग, शीतल भोग, बुटवन, भामरी, दंतेस्वरी बासमती, हल्दीगाठी, टिमरू धान, जिलका जुड़ी, काली मुछ, सिधवान, चिमड़ी धान, करायत, गुरमुटीया, सकरी, लुचाई, देव भोग, बासमती, सफरी सहित अन्य धान की किस्में लगी हैं। इन्हें वह संरक्षित कर रही हैं। इन किस्मों में से विष्णु भोग और शीतल भोग किस्म को बस्तर राजपरिवार के लिए उगाया जाता था।

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा इसलिए भी कहा गया है क्योंकि यहां केवल धान की 23 हजार से ज्यादा किस्में हैं। इतनी किस्में देश के किसी राज्य में नहीं हैं। यही नहीं, दुनियाभर में फिलीपींस ही ऐसा देश है, जहां छत्तीसगढ़ से ज्यादा धान की किस्में हैं.

जड़ी-बूटियों का खजाना है बस्तर
बस्तर के जंगल में विभिन्न प्रकार के औषधि, जड़ी-बूटी, कंद-मूल, वनस्पति आदि पाए जाते हैं। इन जड़ी-बूटियों को भी प्रभाती संरक्षित कर रही हैं। वह अपने खेत में सफेद मूसली, सतावर, काली मूसली, जीवंती, पादुर पाटला, उतरण, अधापुष्पी, हृदय बीज, इंद्रायण बड़ी, घाव पत्ता, लघु कंटकारी, रामदातौन, माकड़ तेंदू, अरणी अग्निमंथ, खीरनी, फेट्रा, कुटज, पीला धतूरा, जंगली ककड़ी, भृंगराज, जंगली काला तिल, जंगली कपास सहित अन्य औषधीय पौधे संरक्षित कर रही हैं। बस्तर में पाए जाने वाले औषधीय पौधों की विदेशों में भारी डिमांड है। प्रभाती बताती हैं कि कोरोना काल में औषधीय पौधों से ही कई लोग ठीक हुए हैं।