Pusa Mustard 32: बोइए सरसों की ये नई किस्म, तीन गुना मिलेगी तेल की मात्रा
नर्सरी टुडे डेस्क
नई दिल्ली। बीते कुछ सालों में किसानों द्वारा एक जैसी खेती करने से मिट्टी खराब हो रही है। इससे न सिर्फ फसल चक्र प्रभावित हो रही है, बल्कि सरसों की खेती का रकबा भी घट रहा है। परिणामस्वरूप सरसों तेल के दाम बहुत महंगे हो गए हैं। इन सबको देखते हुये केंद्र व राज्य सरकार सरसों की खेती को बढ़ावा दे रही है। यही नहीं, कृषि वैज्ञानिक भी ऐसी क़िस्मों का आविष्कार कर रहे हैं, जिससे ज्यादा पैदावार मिले और किसानों को फसल से अधिक से अधिक मुनाफा मिले। इसी कड़ी में कृषि वैज्ञानिकों ने सरसों की एक ऐसी शानदार किस्म विकसित की है जिसमें सामान्य सरसों के मुकाबले तीन गुना तेल की मात्रा पाई गई है। अगर किसान आगामी रबी सीजन में इस नई सरसों की किस्म की खेती करते हैं तो शर्तिया उन्हें बढ़िया मुनाफा मिलेगा।
पूसा मस्टर्ड-32 किस्म
सरसों की पूसा मस्टर्ड-32 किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था (IARI) पूसा ने विकसित किया है। यह सरसों की पहली एकल शून्य किस्म है। इस किस्म की सबसे खास बात यह है कि इसमें सफेद रतुआ रोग लगने की संभावना बहुत कम है, क्योंकि यह किस्म सफेद रतुआ रोग के प्रति सहनशील है। यह किस्म अच्छी पैदावार देने में समक्ष है। यह किस्म किसानों को सामान्य सरसों की तुलना में अधिक लाभ देगी। इस किस्म में करीब 17 से 18 सरसों के दाने पाए जाते हैं। इसमें तेल की मात्रा भी बेहतर है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है।
पूसा मस्टर्ड-32 के लाभ
पूसा मस्टर्ड-32 किस्म में इरुसिक एसिड की मात्रा बहुत कम है, जिससे हृदय रोग का खतरा कम रहेगा। इस किस्म को बोने सामनी की तुलना में 10 क्विंटल तक अधिक उत्पादन मिलेगा। यही नहीं, इसके बीज से निकलने वाले तेल में झाग कम बनता है, जिससे बेहतर क्वालिटी का तेल प्राप्त होगा। इसके अलावा इस किस्म में ग्लूकोसिनोलेट की मात्रा 30 माइक्रोमोल से भी कम है, जबकि सामान्य सरसों में इसकी मात्रा 120 माइक्रोमोल होती है। इस वजह से इस नई किस्म का उपयोग पशु चारे के लिए भी किया जा सकता है। सरसों की यह किस्म 100 दिन के बहुत कम समय में तैयार भी हो जाती है।
सरसों की ये किस्में भी हैं बेहतर
पूसा सरसों 28 किस्म: सरसों की पूसा सरसों 28 किस्म भी काफी अच्छी किस्म मानी जाती है। यह किस्म मात्र 105 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 17 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसमें तेल की मात्रा 21 प्रतिशत तक पाई जाती है। यह किस्म हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के लिए उपयुक्त है।
पूसा मस्टर्ड- 21 किस्म: यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाने वाली किस्म है। इस किस्म में तेल की मात्रा 37 प्रतिशत होती है। सरसों की इस किस्म से करीब 18 से 21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म 137 से 152 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म पंजाब, दिल्ली, राजस्थान व उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त है।
पूसा बोल्ड किस्म: सरसों की पूसा बोल्ड किस्म की फलियां मोटी एवं इसके एक हजार दानों का वजन करीब 6 ग्राम होता है। इस किस्म से 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त होती है। इसमें तेल की मात्रा सबसे अधिक 42 प्रतिशत तक होती है। यह किस्म राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 130 से 140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।
पूसा जय किसान (बायो-902): सरसों की यह किस्म सिचिंत क्षेत्रों में ज्यादा उगाई जाती है। यह किस्म विल्ट, तुलासिता और सफेद रोली रोग को सहने में समक्ष है। इसमें इन रोगों का प्रकोप कम होता है। सरसों की पूसा जय किसान (बायो-902) किस्म से 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार मिल सकती है। इसमें तेल की मात्रा करीब 38 से 40 प्रतिशत तक पाई जाती है। यह किस्म 130 से 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।