पपीते की खेती में बोरोन की कमी से फलों को हो सकता है नुकसान

नई दिल्ली: आजकल देश के किसान अच्छी कमाई के लिए पारंपरिक खेती से हटकर गैर-परंपरिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं। फलों की खेती में कम समय लगता है जबकि मुनाफा होने कि सम्भावना बहुत अधिक रहती है। पपीता एक ऐसा फल है जिसकी खेती पुरे देश में कि जाती है। हालांकि, पपीते की खेती में बोरोन नामक एक सूक्ष्म पोषक तत्व है, जिसकी कमी से किसान को भारी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।

पपीते में बोरोन की कमी से पौधे में कई प्रकार की समस्याएं दिखने लगती हैं, जो पौधे की सेहत और फल उत्पादन के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है। बोरोन की कमी के कारण पत्तियों का आकार छोटा होने लगता है, और वे सख्त व उलटी-सीधी दिखाई देती हैं।

पत्तियों में पीलापन भी पड़ने लगता है यानी इंटरवेनियल क्लोरोसिस एक आम लक्षण है। इससे पत्तियों पर धब्बे और पीलेपन का असर दिखता है, खासकर नई पत्तियों पर। बोरोन की कमी से पौधे का विकास धीमा हो जाता है। टहनियों  सूखने लगते हैं और पौधे की ऊंचाई कम हो जाती है।

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पपीते में बोरोन की कमी से फलों की गुणवत्ता भी  खराब होने लगती है। फल विकृत और फटे हुए हो सकते हैं, जिससे उनकी बिक्री बाजार में तो हो जाता है लेकिन गुणवत्ता कि कमी के कारण किसानों को सही मुनाफा नहीं मिल पता है।

इस  कमी को ठीक करने के लिए, बोरोन युक्त उर्वरक जैसे कि बोरेक्स (सोडियम बोरेट) या सोलुबोर (सोडियम पेंटाबोरेट) को मिट्टी में डाला जा सकता है।अत्यधिक मात्रा में इसका उपयोग न करे कियोंकि यह फल और पेड़ के लिए हानिकारक हो सकता है। पत्तियों पर बोरेक्स या सोलुबोर का छिड़काव बोरोन की कमी को जल्दी ठीक करने का एक प्रभावी तरीका है।

 

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