अक्टूबर-नवंबर बिहार में पपीता की खेती के लिए उपयुक्त

पटना: आजकल किसान पपीता की खेती को लेकर बहुत आकर्षित हो रहे हैं। इसे फायदे का सौदा मान जा रहा है। लेकिन पूरी जानकारी के बिना खेती शुरू करना हानिकारक भी हो सकता है। पपीता की मार्केटिंग इस समय ज़बरदस्त  है, क्योंकि इसके औषधीय और पौष्टिक गुणों से लोग परिचित हैं, इस कारण लोग पपीता का सेवन खूब कर रहे हैं ताकि सेहतमंद रह सकें।

पपीता एक उष्णकटिबंधीय फल है और इसकी अलग-अलग किस्मों की रोपाई साल में तीन बार की जा सकती है—जून-जुलाई, अक्टूबर-नवंबर और मार्च-अप्रैल में। हालांकि, बिहार में जून-जुलाई के मानसून के दौरान पपीता लगाने की सलाह नहीं दी जाती है, क्योंकि पपीता पानी को लेकर बेहद संवेदनशील होता है। यदि खेत में 24 घंटे से ज्यादा पानी जमा हो गया तो फसल बचाना मुश्किल हो जाता है।

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पपीता की सफल खेती के लिए पानी की सही मात्रा बेहद जरूरी है। पानी की कमी से पौधों और फलों की वृद्धि प्रभावित होती है, जबकि ज्यादा पानी से पौधा नष्ट हो सकता है। इसलिए पपीते की खेती ऐसे खेतों में की जानी चाहिए जहां पानी का जमाव न हो। गर्मियों में हर हफ्ते और सर्दियों में हर दो हफ्ते में सिंचाई की जानी चाहिए।

अक्टूबर-नवंबर में पपीता की खेती तेजी से प्रचलित हो रही है, क्योंकि इस समय इसमें बीमारियां कम लगती हैं। बेहतर फसल के लिए उन्नत किस्म के बीजों का चयन जरूरी है। बीजों को कीटनाशक और फफूंदनाशक दवाओं से उपचारित कर बोना चाहिए।

पपीते की रोपाई के लिए 60x60x60 सेंटीमीटर के गड्ढे तैयार किए जाते हैं, जिनमें रोपाई से एक माह पहले नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और देशी खाद मिलाना चाहिए। पपीते के पौधों के लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान और सामान्य पीएच वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है।