विदेशी सेब से हिमाचल के बागवानों को आर्थिक संकट

शिमला: देश की मंडियों में विदेशी सेब आने से हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादकों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। अलग-अलग देशों से सस्ते सेब आ रहे हैं, जिससे हिमाचल के बागवानों को नुकसान हो रहा है। पहले हिमाचली सेब 4 हजार रुपये प्रति पेटी बिक रहा था, लेकिन अब विदेशी सेब की वजह से इसकी कीमत गिरकर 1800 से 2000 रुपये प्रति पेटी रह गई है। शिमला और किन्नौर के इलाकों से आने वाला सेब की कीमत गिरने के साथ साथ मांग भी घट गयी है।

बागवानों को अभी सेब के वही दाम मिल रहे हैं जो साल 2008 में मिलते थे। इससे उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है। इसका मुख्य कारण विदेशी सेब है। कुल्लू फलोत्पादक मंडल के अनुसार, विदेशी सेब का व्यापार बागवानों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। सरकार विदेशी सेब के आयात पर केवल 50 प्रतिशत शुल्क ले रही है, जबकि यह 100 प्रतिशत होना चाहिए। कुल्लू फलोत्पादक मंडल के महामंत्री राजीव ठाकुर ने बताया कि इस समय जो दाम बागवानों को मिल रहे हैं, वे वही हैं जो 2008 में मिलते थे। बागवानों को अब भी घाटा उठाना पड़ रहा है। सरकार को आयात शुल्क 100 प्रतिशत करना चाहिए और अफगानिस्तान के रास्ते देश में आ रहे सेब को रोकना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सितंबर में सेब 70 से 80 रुपये प्रति किलो बिकता था, लेकिन अब कम फसल के बावजूद दाम 40 से 50 रुपये प्रति किलो हैं। फलोत्पादक मंडल की मासिक बैठक में तय किया गया कि एक प्रतिनिधिमंडल प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार के बागवानी मंत्री से मुलाकात करेगा और उनकी समस्याओं के बारे में बताएगा।

देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य बड़ी मंडियों में ईरान से हर रोज 300 से 350 मीट्रिक टन सेब आ रहा है, जिसका लैंडिंग प्राइज 60 रुपए के करीब है। ईरान से आने वाले सेब की कीमत हिमाचल के सेब के मुकाबले बहुत कम है।  इस समय ईरानी सेब दिल्ली और दुसरे मंडियों में 60 से 70 रुपये प्रति किलो  के हिसाब से बिक रहा है। कम कीमत  पर उपलब्ध होने के कारण गरीब और मध्यम वर्ग के लोग इसे खरीद कर खूब खा रहे हैं, जिससे हिमाचली सेब की मांग दिनों दिन घट रही है। इसी कारण मंडियों में हिमाचली सेब का भाव 2 हजार रुपये प्रति पेटी तक गिर गया है।

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ऐसे में बागवानों को सेब की फसल पर साल भर में किए गए खर्च को निकालना भी मुश्किल हो गया है। इतना ही नहीं उनका भविष्य भी अन्धकार में आ गया है। पिछले साल देश की मंडियों में 32 देशों से सेब आयात किया गया था, जिसमें ईरान का सेब भी शामिल था। जनवरी 2023 से दिसंबर 2023 तक ईरान से 1,16,042 मीट्रिक टन सेब आयात हुआ, जिसकी कीमत करीब 478 करोड़ रुपये थी। 2023 में ईरानी सेब का लैंडिंग प्राइस 41.26 रुपये प्रति किलो था। इसी तरह, 2023 में भी ईरान से 79,237 मीट्रिक टन सेब आयात हुआ, जिसकी कीमत करीब 300 करोड़ रुपये थी। उस समय ईरानी सेब का लैंडिंग प्राइस 37.91 रुपये प्रति किलो था। साल 2022 में 22 देशों से सेब आयात किया गया था। इस तरह हर साल विदेशी सेब से हिमाचली सेब को कड़ी टक्कर मिल रही है।

शिमला के बखौल गांव के बागवान संजीव चौहान ने बताया कि हिमाचल में हर साल सेब का कारोबार 5000 करोड़ रुपये का होता है। प्रदेश में लाखों बागवान परिवार सेब पर निर्भर हैं। इन दिनों ईरान से हर दिन हजारों क्रेट सेब देश की मंडियों में आ रहे हैं, जो बाजार में 70 रुपये प्रति किलो मिल रहे हैं। इससे हिमाचली सेब की मांग कम हो गई है और इसके दाम 2000 से 2500 रुपये प्रति पेटी तक गिर गए हैं। डायरेक्टरेट जनरल आॅफ कमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्टेटिस्टिक्स के मुताबिक पिछले साल मंडियों में ईरानी सेब का औसतन भाव 41.26 रुपए किलो रहा था। इस तरह ईरान से अच्छी क्वालिटी का सेब बाजार में लोगों को 55 रुपए किलो तक उपलब्ध हुआ था। जबकि दो साल पहले ईरान के सेब की कीमत 37.91 रुपए प्रति किलो था। अफसोस की बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में सेब के उत्पादन में गिरावट आ रही है। इसके पीछे किया कारण है।  हिमाचल प्रदेश में 2023 में सेब उत्पादन में करीब 28% की गिरावट आई, हालांकि सेब की खेती का क्षेत्र 2023 में 664 हेक्टेयर बढ़ा।

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार, राज्य में 2023 में 4.84 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ, जो 2022 के 6.72 लाख मीट्रिक टन उत्पादन से 28% कम था।

केंद्र और राज्य  सरकारों को ठोस कदम उठाने पड़ेंगे ताकि लोगों में बागवानी की रूचि  को फिर से बहाल किया जाये और सेब के उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी किया जाये। किसानों को भी उनके फसल का सही मुआवजा मिलना चाहिए। राज्य सरकार को चाहिए कि किसानों को प्रोत्साहित करे और उनको सही पैसा दिलवाने में मदद करें।