गाला सेब की खेती से बदल रही हिमाचल के बागवानों की किस्मत
कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में खेती-बाड़ी के साथ-साथ बागवानी भी लोगों की आर्थिकी का अहम हिस्सा है। इन दिनों बागवान नए बगीचे लगाने पर जोर दे रहे हैं। बागवानी विभाग के विशेषज्ञ डॉ. उत्तम पराशर ने बताया कि बागवान रूटस्टॉक की तकनीक अपनाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं।
डॉ. पराशर के अनुसार, कुल्लू-मनाली के इलाकों में रॉयल डिलीशियस और गोल्डन एप्पल जैसे सेब की पारंपरिक किस्मों के साथ अब गाला सेब की खेती तेजी से बढ़ रही है। गाला सेब जल्दी तैयार होने वाली एक किस्म है। इसके गहरे लाल रंग और खट्टे-मीठे स्वाद के कारण यह बाजार में जल्दी लोकप्रिय हो जाती है। खास बात यह है कि गाला सेब का पौधा लगने के दो से तीन साल के भीतर ही फल देने लगता है।
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गाला सेब की फसल अन्य किस्मों के सीजन से पहले तैयार हो जाती है, जिससे बागवानों को बाजार में अच्छा दाम मिल जाता है। कुल्लू के बजौरा और सेऊबाग जैसे इलाकों में कई बागवान गाला सेब की खेती कर अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं।
डॉ. उत्तम पराशर ने बताया कि बागवानों को अब सीडलिंग की बजाय 100% रूटस्टॉक तकनीक का उपयोग करना चाहिए। रूटस्टॉक के पौधे जल्दी फल देते हैं और इनमें उत्पादन अधिक होता है। बर्फबारी वाले ऊपरी इलाकों में MM111 रूटस्टॉक या सीडलिंग पर गाला सेब की खेती की जा सकती है। हालांकि, बेहतर उत्पादन के लिए बागवानों को रूटस्टॉक आधारित पौधों की ओर शिफ्ट होना चाहिए।
गाला सेब की खेती को हाई डेंसिटी तकनीक से भी किया जा सकता है। इस तकनीक में कम जगह में अधिक पौधे लगाए जाते हैं, जिससे बागवान कम भूमि पर भी अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।