पर्वतीय क्षेत्रों में सघन बागवानी से कम जगह में ज्यादा मुनाफा

लखनऊ: पर्वतीय क्षेत्रों के किसान अब सघन बागवानी तकनीक के जरिये कम जगह में भी बड़े पैमाने पर फलों की खेती कर सकते हैं। इस तकनीक से छोटे खेतों में अधिक पौधे लगाकर अच्छी गुणवत्ता वाले फलों का उत्पादन किया जा सकता है। गढ़वाल विश्वविद्यालय के हैप्रेक के कृषि विशेषज्ञ डॉ. जयदेव चौहान ने बताया कि सघन बागवानी के माध्यम से किसान सेब, नाशपाती, खुमानी, आड़ू, अमरूद और माल्टा जैसे फलों की खेती कर सकते हैं।

सघन बागवानी में पौधों को कम दूरी पर लगाया जाता है। साधारण बागवानी में पौधों के बीच 10 मीटर की दूरी होती है, जिससे एक हेक्टेयर में केवल 100 पौधे लग पाते हैं। लेकिन सघन बागवानी में पौधों के बीच की दूरी ढाई से तीन मीटर तक रखी जाती है, जिससे एक हेक्टेयर में करीब 1,300 पौधे लगाए जा सकते हैं।

सघन बागवानी के लिए बौनी प्रजाति के पेड़ों का चयन किया जाता है, जिनकी जड़ें गहराई में नहीं जातीं और जो आकार में छोटे रहते हैं। पौधे लगाने से पहले खेत में निशान लगाकर पौधों को निर्धारित दूरी पर लगाया जाता है। पौधों की ऊंचाई 70 सेंटीमीटर होने पर उनकी छंटाई करनी होती है। इससे नई और मजबूत शाखाएं विकसित होती हैं, जिनसे अधिक फल प्राप्त होते हैं।

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सेब की सघन बागवानी पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसमें सेब की एम 99 किस्म उपयुक्त है, जो तीन साल में फल देना शुरू कर देती है। इसकी ऊंचाई 10 से 12 फीट तक होती है और साल में तीन से चार बार कटाई-छंटाई करनी होती है।

सघन बागवानी में पौधों की ऊंचाई कम होती है, जिससे किसानों को पेड़ों के बीच मौसमी सब्जियां उगाने का भी मौका मिलता है। यह तकनीक कम समय में अधिक उत्पादन देने के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित हो रही है।