लंबे सूखे के बाद सेब बागवानी की तैयारी में जुटे किसान

शिमला: लंबे सूखे के बाद बारिश और बर्फबारी होने से अब सेब के बागवान नए बगीचे लगाने की तैयारियों में जुट गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नई किस्मों के सेब के बगीचे तैयार करने के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाने जरूरी हैं। अगर गलत तरीके से बगीचा लगाया गया, तो इसका असर फल की गुणवत्ता और पौधों के विकास पर पड़ सकता है, जिससे बागवानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

बागवानी विशेषज्ञों का मानना है कि सेब का बगीचा लगाने से पहले स्थान और जलवायु का सही आकलन करना जरूरी है। इसके बाद यह तय करना होगा कि कौन-सी सेब की किस्म उस इलाके के लिए उपयुक्त होगी। बगीचे की रूपरेखा बनाने से पहले मिट्टी की जांच भी बहुत जरूरी होती है।

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी एवं बागवानी विशेषज्ञ डॉ. नरेंद्र कायथ के अनुसार, सेब के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए और जमीन की सतह पथरीली नहीं होनी चाहिए।

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डॉ. कायथ का कहना है कि बगीचा लगाने की विधि भूमि की ढलान पर निर्भर करती है। समतल भूमि पर वर्गाकार या आयताकार विधि अपनाई जाती है। ढलानदार भूमि पर कंटूर विधि से बगीचा लगाना सही रहता है। छोटे-छोटे खेतों में सेब के पौधे टैरेस बनाकर उचित दूरी पर लगाए जाते हैं।

बगीचा लगाने से पहले गड्ढों की खुदाई बहुत महत्वपूर्ण है। गड्ढे का आकार भूमि की उपजाऊ क्षमता पर निर्भर करता है, लेकिन सामान्यतः एक मीटर का गड्ढा बनाया जाता है। गड्ढे में गली-सड़ी गोबर की खाद के साथ आधा किलो सुपर फास्फेट डालना जरूरी है, जिससे पौधों को बेहतर पोषण मिल सके।

विशेषज्ञों की सलाह मानकर सही जगह, सही मिट्टी और सही विधि से बगीचा लगाने पर बागवानों को बेहतर गुणवत्ता और अधिक उत्पादन मिलेगा। इस बार बारिश और बर्फबारी के बाद सेब उत्पादन में सुधार की उम्मीद की जा रही है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी।