जैविक आम की खेती: पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद
लखनऊ: आम को फलों का राजा कहा जाता है, और यह भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लेकिन आधुनिक रासायनिक खेती के कारण मिट्टी की उर्वरता, पर्यावरणीय संतुलन और फलों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। ऐसे में, जैविक आम की खेती न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, बल्कि मिट्टी और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में भी सहायक है।
जैविक खेती के लिए उन किस्मों का चयन करना जरूरी है, जो रोग और कीट प्रतिरोधी हों। लंगड़ा, दशहरी, आम्रपाली और मल्लिका जैसी किस्में इस दृष्टि से उपयुक्त मानी जाती हैं। इसके अलावा, स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुसार पौधे चुनने से फूल और फल झड़ने की समस्या भी कम होती है।
प्रमाणित नर्सरी से स्वस्थ पौध सामग्री खरीदें। रोपण से पहले नीम तेल और जैविक फफूंदनाशक से उपचार करें। माइकोराइजा और Trichoderma जैसे लाभकारी सूक्ष्मजीवों का उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करता है।
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जैविक खेती में मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना सबसे जरूरी है। इसके लिए: गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट और हरी खाद का उपयोग करें।मिट्टी में जैव उर्वरक जैसे Rhizobium, PSB और KMB मिलाने से पोषण स्तर बेहतर होता है।
रासायनिक कीटनाशकों की बजाय जैविक उपचार अधिक सुरक्षित होते हैं। नीम तेल (5%), दशपर्णी अर्क, लहसुन-अदरक-नीम मिश्रण और गोमूत्र आधारित कीटनाशक प्रभावी होते हैं।
टपक सिंचाई (Drip Irrigation) अपनाकर पानी की बचत करें। आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से फंगल रोगों का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए पानी का संतुलित उपयोग करें। जैविक आम की खेती न केवल किसानों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि यह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखती है।