पटना में आयोजित होगा दो दिवसीय मखाना महोत्सव, वैज्ञानिक, निर्यातक और किसान लेंगे हिस्सा
नई दिल्ली। बिहार सरकार मखाने को विश्व के बाजार तक पहुंचाने के लिए मखाना महोत्सव कराने जा रही है। विगत वर्ष की तरह इस वर्ष भी बिहार सरकार पटना के ज्ञान भवन में दो दिवसीय मखाना महोत्सव का आयोजन करेगी। कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने बताया कि इस मखाना महोत्सव के माध्यम से मखाना के उत्पादन वृद्धि और मखाने के बाजार को एक नए आयाम तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। इस आयोजन में मखाने के डिजिटल मार्केटिंग को लेकर भी सुझाव दिए जाएंगे। इस प्रकार के आयोजन के कारण ही पिछले साल किसानों को मखाने के अच्छे खासे दाम प्राप्त हुए और व्यापारियों ने किसानों से उनकी फसल काफी अच्छे दामों पर खरीदी।
उल्लेखनीय है कि एक से दो दिसम्बर तक उद्यान निदेशालय की तरफ से मखाना महोत्सव का आयोजन बिहार की राजधानी पटना में किया जाएगा। महोत्सव में दरभंगा एयरपोर्ट की तरह राज्य के अन्य एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड पर‘बिहार का मखाना-मिथिला मखाना’की बिक्री के लिए रणनीति पर विमर्श किया जाएगा।
वैज्ञानिक और ट्रेडर्स लेंगे हिस्सा
कृषि विभाग के सचिव संजय अग्रवाल ने बताया कि इस महोत्सव में मखाना के प्रगतिशील किसान, उत्पादक कंपनी, देश और राज्य के प्रमुख निर्यातकों, ट्रेडर्स, वैज्ञानिकों को आमंत्रित किया गया है। वहीं मखाने की खेती एक जिला एक उत्पाद के तहत 6 जिलों में की जा रही है जिसमें दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, सहरसा, कटिहार और अररिया शामिल हैं. वहीं मखाने के आर्थिक महत्व को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार के द्वारा मखाना विकास योजना का संचालन 2019-20 से किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत मखाना की उन्नत किस्मों के बीज उत्पादन और प्रत्यक्षण और क्षेत्र विस्तार को बढ़ावा देने के लिए सहायता अनुदान का प्रावधान किया गया है।
किसानों की बढ़ी आमदनी
अररिया जिले के मखाना किसान कहते हैं कि राज्य सरकार के द्वारा मखाना महोत्सव शुरू करने से उनकी आमदनी बढ़ी है। मखाना खरीदने के लिए लोग घर तक आ रहे हैं। इस महोत्सव के जरिये दूसरे किसानों के अनुभव और वैज्ञानिकों से खेती में नए तरीके की जानकारी भी मिल रही है। दरभंगा जिले के किसान राम कुमार साहू कहते हैं कि इस तरह के महोत्सव शुरू होने से इस साल मखाने की गुड़िया 18 से 20 हजार रुपये प्रति क्विंटल बिकी है। पिछले साल चार से पांच हजार रुपये के भाव से बिकी थी। वहीं अब फसल बेचने के लिए व्यापारी खोजना नहीं पड़ता है बल्कि व्यापारी दरवाजे पर फसल तैयार होने से पहले पैसा लेकर खड़े रहते हैं।