उत्तर प्रदेश का एक अनोखा बाग, जहां आप अपने मनपंसद पौधे को ले सकते हैं गोद

नई दिल्ली। आज के दौर में ऐसे बहुत से लोग हैं जो बागवानी तो करना चाहते हैं लेकिन आजकल के भागदौड़ भरे जीवन में कुछ के पास बागवानी करने का समय नहीं है तो कुछ लोगों के पास जगह की कमी है। ऐसे ही प्रकृति प्रेमी लोगों की समस्याओं का समाधान किया है कानपुर के हरि मिश्र ने। हरि मिश्र ने पत्रकारिता छोड़ कर बीस बीघा जमीन पर देसी विदेशी फलों की अलग अलग किस्मों के लगभग 3500 पौधे लगाए हैं, साथ ही इन पौधों को गोद देने का काम भी शुरू किया है। जगह और समय के अभाव में पौधे लगाने से वंचित रह गए कोलकाता, हैदराबाद, गुजरात, अहमदाबाद, दिल्ली, मध्य प्रदेश समेत देश भर से लोग इन्हें गोद ले रहे हैं। गोद लिए पेड़-पौधों के पास लगीं नाम की तख्तियों का अलग ही रंग दिखता है।

हरि मिश्र बताते हैं कि वे काफी लंबे वक्त तक पत्रकारिता से जुड़े रहे। पत्रकारिता के दौरान साल 2018 में उन्हें कश्मीर घूमने का मौका मिला तो वे वहां के बाग देखकर हैरान रह गए। तब तक उन्होंने पेड़ों के बारे में सिर्फ पढ़ा था। उन्होंने वहां के किसानों से इसके बारे में जानकारी ली।

हरी बताते हैं कि वर्षों तक नौकरी के दौरान गांव में खेत बंजर हो चले थे, तभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बागवानी के प्रति प्रेरक बातों से वर्ष 2019 में इस दिशा में कदम बढ़ाए। तत्कालीन जिला उद्यान अधिकारी सीपी अवस्थी सहयोगी बने। पौधे बड़े होने पर इंटरनेट मीडिया पर बाग को लेकर पोस्ट डाली तो बहुत से लोगों की टिप्पणी आई कि आपकी कृषि भूमि है, लेकिन हमारे पास तो कोई जगह ही नहीं है। इसलिए यह अनुभव हम नहीं कर सकते। कुछ लोग समय न होने की बात भी कहते। बस यहीं से विचार आया कि लोगों के पर्यावरण प्रेम को पेड़-पौधे गोद देकर पूरा किया जाए। उन्हें बताया कि पौधा लगाएंगे और परिवरिश भी हम करेंगे, उन्हें केवल गोद लेकर पुण्य कमाना है। देखते ही देखते लोगों का प्रकृति प्रेम उमड़ा और अब तक कई राज्यों के सैंकड़ों लोग पौधे गोद ले चुके हैं।

हरि मिश्र के पिता रामस्वरूप मिश्र रिटायर्ड स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी हैं और उनकी मां पदमावती रिटायर्ड टीचर हैं। हरि मिश्रा ने करीब पच्चीस सालों तक कई संस्थानों में पत्रकार के तौर पर काम किया। हरि मिश्रा की एक बेटी औरन और एक बेटा है। पौधों के काम में अब बेटा भी एक अहम रोल निभा रहा है।

हरि मिश्र के बाग में पंजाबी किन्नू के 850 पौधे, पंजाबी मौसम्बी के 550 पौधे, थाई और देशी कटहल के 200 पौधे, एपल बेर के 400 पौधे, आम के 100 पौधे, अनार के 100 पौधे, ताइवानी अमरूद के 250 पौधे, देशी अमरूद के 300 पौधे, अमेरिकन डेजी किन्नू के 350 पौधे, देशी नींबू के 150 पौधे, लाहौरी नींबू के 200 के फलदारी पौधे लगे हैं।

हरी मिश्र अपने बाग में किसानों की पाठशाला लगाते हैं। वह बताते हैं, “बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के चलते किसानों को हर साल लाखों का नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में हम उन्हें आधुनिक खेती के गुर सिखाते हैं। बागवानी के प्रति जागरूक करने के साथ ही फूल और अन्य प्रकार की फसल की खेती करने के लिए किसानों की मदद करते हैं।

बाग में देश के दूसरे प्रांतों के साथ ही उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर व देहात, बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर, फतेहपुर, औरैया, बदायूं व अंबेडकर नगर आदि जिलों के लोग पेड़-पौधे गोद ले चुके हैं। इनमें अधिकारी, समाजसेवी व स्वर्गीय माता-पिता के नाम से पौधे लेने वाले हैं। कुछ अपने जन्मदिन के मौके पर पौधे गोद लेकर यहीं केक काटने भी पहुंचते हैं। देश भर से लोगों का यह सिलसिला चल रहा है। ओम बताते हैं, केवल नाम की तख्ती लगाने को लेकर 100 से 200 रुपये लेते हैं, जिससे पेड़-पौधे के प्रति लोगों का स्नेह बना रहे। इसे जब तक पेड़ रहेगा-नाम चलेगा, जीवन के रंग, प्रकृति के संग अभियान नाम दिया गया है।