China aster : चाइना एस्टर की उन्नत खेती
पियुष सिंह, कृष्ण सिंह तोमर, रजत पटेल, अमित मौर्य
(पुष्प विज्ञान एवं भूदृष्य निर्माण विभाग, बादां कृषि एवं प्रद्योगिक विश्वविद्यालय,
बाँदां, उ.प्र.)
चाइना एस्टर एक बहुत ही महत्वपूर्ण वार्षिक फूल है। वार्षिक फूलों में गुलदाउदी तथा गेंदा के बाद तीसरे स्थान पर आता है। हमारे देश के सीमांत एवं छोटे किसान बड़े पैमाने पर पारंपरिक फसल के रूप में इसकी खेती करते है। भारत में चाइना एस्टर की खेती मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में की जाती है। चाइना एस्टर को खुली जगह, अर्द्धछाया गृह तथा हरित गृह में उगाया जाता है। इसके फूल विभिन्न रंगो में खिलने तथा लम्बे समय तक ताजा रहने के कारण सजावट के लिए पंसद किये जाते है। इसके फूलों से मनमोहक रंगोली, माला, पुष्पविन्यास बनाया जाता है। चाइना एस्टर नारियल के बागानों में मिश्रित फसल के रूप में उपयुक्त होता है।
जलवायु एवं भूमि
चाइना एस्टर के लिए ठण्डी जलवायु उपयुक्त रहती है। अच्छी तरह से फूलों के रंग के विकास के लिए 50-60 प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता के साथ दिन का तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस और रात का 15-17 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
हरित गृह में इसको वर्ष भर तापमान, प्रकाश और आर्द्रता को नियंत्रित कर उत्पादन किया जाता है। चाइना एस्टर की अच्छी वृद्धि के लिए उपजाऊ, उचित जल निकास वाली, लाल दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। चाइना एस्टर की खेती के लिए ऐसी भूमि जिसका पीएच मान 6.8-7.5 उपयुक्त होती है।
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खेत की तैयारी
चाइना एस्टर की खेती के लिए एक अच्छी तरह से प्रबंधित और समतल खेत की आवश्यकता होती है। इसके लिए खेत में 2 से 3 जुताई अच्छी तरह से करने के बाद खेत में पाटा लागाना चाहिए और उसमें 5-6 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति एकड़ की दर से मिलानी चाहिए। क्यारियों की लम्बाई अपनी सुविधा के अनुसार रखनी चाहिए तथा जल निकास की समुचित व्यवस्था रखनी चाहिए।
नर्सरी तैयार करना
बीज को बीज बक्से या ऊँची क्यारियों में डाल कर पौध तैयार कर सकते है। भारत में जून से अक्टूबर तक किसी भी समय पौध को तैयार किया जा सकता है। बीज के अंकुरण के लिए उचित तापमान 21-25 डिग्री सेल्सियस अच्छा माना जाता है। एक एकड़ क्षेत्र के लिए लगभग 125-150 ग्राम बीज पर्याप्त होता है।
नर्सरी के लिए मिट्टी, बालू तथा गोबर की खाद के मिश्रण 1:1:1 से 1 मीटर चैड़ी तथा 3-6 मीटर लम्बी क्यारियाँ तैयार करनी चाहिए। बीज को 5 सेमी फासले वाली कतार पर 1 सेमी दूरी पर गिराना चाहिए तथा बीज को सड़ी गोबर की खाद या छनी हुई पत्ती की खाद से ढक देना चाहिए, ध्यान रहे बीजों को ज्यादा गहराई में नही डालें। नर्सरी में महीन हजारे से पानी देते रहना चाहिए जिससे नमी बनी रहे।
रोपाई एवं पौधे तथा लाइन के बीच की दूरी
रोपाई के लिए स्वस्थ तथा रोग मुक्त अंकुरित पौध का उपयोग करना चाहिए। जब पौध में 3 से 4 पत्तियां आ जाए तब रोपाई के लिए उपयुक्त होती है। रोपाई से पहले हमें पौध की जड़ों को कवकनाशी घोल में डुबोना चाहिए जिससे कवकजनित बीमारी से बचाया जा सके। पौध को शाम के समय रोपना चाहिए क्योंकि वह इससे आसानी से स्थापित हो जाती है तथा पौधों की मृत्यु दर कम होती है और इससे पौधे की अच्छी वृद्धि होती है।
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फूल उत्पादन के लिए उचित दूरी आवश्यक होती है। अच्छी उपज के लिए कतार की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी रखनी चाहिए। इससे फूल खिलने की अवधि तथा बीज उत्पादन भी बढ़ जाता है।
उन्नतशील किस्में
चाइना एस्टर के किस्मों को लम्बाई के आधार पर तीन वर्गों में बाटाँ गया है-
(क) लम्बी किस्में
इस वर्ग के पौधे की ऊँचाई 70-90 सेमी होती है तथा फूलों का आकार बड़ा होता है, जैसे वकेट पाउडरपफ, चिकुमा स्टोन, मैट सुमोटो, टोटेम पोल।
(ख) मध्यम किस्में
इस वर्ग के पौधे की ऊँचाई 50-60 सेमी होती है तथा फूल मध्यम आकार के नीले, गुलाबी, सफेद लाल इत्यादि रंगो के होते हंै, जैसे जाइंट ग्रीगो, जाइंट कोमेट, क्योटो पोमपोम।
(ग) बौनी किस्में
इस वर्ग के पौधों की ऊँचाई 20 सेमी होती है तथा फूल मध्यम से छोटे आकार के होते हंैै, जैसे कोमेट, कतर कार्पेट, मिलेडी।
भारत की महत्वपूर्ण किस्में
भारत में उगाई जाने वाले प्रमुख किस्में निम्नलिखित हैं-
अर्का कामिनी : पौधे की ऊँचाई 60 सेमी होती है तथा फूल मध्यम आकार के गुलाबी रंग के होते है। अर्का कामिनी फूलों को 8 दिन तक रखा जा सकता है ।
अर्का पूर्णिमा: पौधे की ऊँचाई 50 सेमी होती है तथा फूल बड़े आकार के सफेद रंग के होते है। इसके एक फूल का वजन लगभग 3-5 ग्राम होता है।
अर्का शशांक: पौधे की ऊँचाई 55 सेमी होती है तथा फूल सफेद रंग के होते है। एक फूल का वजन 2.5 ग्राम होता है। इसके फूल माला के लिए उपयुक्त होते है।
फुले गणेश वायलेट: इसके फूल मध्यम आकार के वायलेट रंग के होते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 60 लाख फूलों का उत्पादन करती है।
फुले गणेश गुलाबी : यह एक अगेती किस्म है। इसके फूल बड़े आकार के गुलाबी रंग के होते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 43 लाख फूलों का उत्पादन करती है।
फुले गणेश सफेद: यह एक पछेती किस्म है। इसके फूल मध्यम आकार के सफेद रंग के होते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 47 लाख फूलों का उत्पादन करती है।
फुले गणेश बैंगनी : इसके फूल मध्यम आकार के बैंगनी रंग के होते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 46 लाख फूलों का उत्पादन करती है।
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खाद एवं उर्वरक
फूलों की अच्छी पैदावार के लिए खाद एवं उर्वरक की जरूरत होती है। पोषक तत्व की कमी से पौधों का विकास कम होता है तथा फूलों की पैदावार भी कम होती है। अच्छी तरह से पौधों के विकास एवं फूलों की वृद्धि के लिए खेत की तैयारी के समय 90 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस, और 60 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है। 90 किग्रा नाइट्रोजन फसल की रोपाई के 40 दिनों के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में पौधों को दी जाती है। सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, कॉपर, बोरान और मैगनीज का प्रयोग खेत में करने से फूलों की गुणवत्ता अच्छी होती है।
सिंचाई
चाइना एस्टर के लिए सभी अवस्थाओं में मिट्टी में उपयुक्त नमी पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक है। किसी अवस्था में पानी की कमी उसकी वृद्धि तथा उत्पादन को प्रभावित करती है। सिंचाई की आवश्यकता और अंतराल मिट्टी एवं मौसम पर निर्भर करता है। जाड़े में 10-12 दिनों एवं अन्य दिनों में 5-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई देना उचित है।
अन्त: कृषि क्रियाए
(क) पिंचिग
पिंचिंग चाइना एस्टर में की जाने वाली एक महत्वपूर्ण क्रिया है। पिंचिंग से पौधों में बगल में निकलने वाली साखा, पौधों पर फूलों की संख्या तथा प्रति यूनिट क्षेत्र की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। पिंचिंग पौधों की रोपाई के 45 दिन बाद करना लाभदायक होता है।
(ख) गुड़ाई
गुड़ाई चाइना एस्टर में की जाने वाली एक महत्वपूर्ण क्रिया है। गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण में मदद करती है तथा मृदा सतह को खुला व वायु संचार को बढ़ाती है।
(ग) वृद्धि नियामकों का उपयोग
चाइना एस्टर में जिब्रेलिक एसिड 200-300 पीपीएम का छिड़काव करने से प्रति पौधे में फूलों की संख्या तथा फूलों की अवधि को बढ़ाता है।
(घ) खरपतवार नियंत्रण
बरसात तथा जाड़े में खरपतवार ज्यादा बढ़ते है। पौध को उगाने के बाद समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए। खेत में पौधा लगाने के पहले डायुरान 1.25 किग्रा या सिमजिन 1.5 किग्रा या एलाक्लोर 1़.5 किग्रा प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करने पर खरपतवार कम निकलते है।
कीट प्रबंधन
(क) लीफ हॉपर
यह कीट रस चूस कर तथा पत्तियों को खाकर वायरस फैलाता है। इसकी रोकथाम के लिए मिथाइल पाराथियान दवा 1.5 मिली/लीटर पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कानी चाहिए।
(ख) एस्टर ब्लिस्टर बीटल
यह कीट पत्तियों तथा फूलों को खाकर नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए मिथोक्सिक्लोर दवा 1-1.5 मिली/लीटर पानी में घोलकर 5-7 दिनों के अंतराल पर छिड़कानी चाहिए।
(ग) माहू
यह कीट जड़ों तथा पौधे के ऊपर नुकसान पहुँचाता है जिससे पौधे कमजोर होकर मर जाते है। इसके लिए जड़ों के पास लिन्डेन 2 मिली/लीटर पानी में घोल कर छिड़कनी चाहिए।
(घ) लीफ माइनर
यह नन्हा कीट पत्तियों के बीच में सुरंग बनाकर जाली के समान कर देता है। इस कीट का प्रकोप होने पर क्लोरोडेन या टोक्साफेन दवा 1.5 मिली/लीटर पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़कानी चाहिए।
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रोग प्रबंधन
(क) कॉलर और रूट रोट
यह चाइना एस्टर की बहुत गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में पौधे अचानक मुरझाने लगते है तथा पौधों के तने जमीन के पास से गलने लग जाते हंैै। इस बिमारी से बचाव के लिए मिट्टी में अतिरिक्त नमी इकट्ठा होने से रोकना चाहिए तथा इस के साथ-साथ कैप्टान, मैनकोजेब जैसे कवकनाशी के उपयोग से भी इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है।
(ख) पर्ण दाग
यह रोग ह्यह्यसेप्टोरिया कैलिस्ट्रेपीह्णह्ण फफूंद के कारण होता है। पत्तियों पर पहले पीला तथा बाद में भूरा या काला धब्बा आ जाता है। इस रोग में डाइथेन एम-45 दवा 3 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर 7 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
(ग) मुर्झा
यह फफूंदी से होने वाला मिट्टी जनित रोग है। इस रोग में पौधा मुझार्ने के बाद सूखने लगता है। रोग प्रतिरोधी किस्मों को लगाना चाहिए। बीज उपचार कर पौधे लगाने से रोग की संभावना कम होती है। वेविस्टीन दवा 2 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
उपज
(क) फूल
चाइना एस्टर में पूर्ण रंग आ जाने पर ही फूलों को काटना चाहिए। प्रति पौधे में 25 से 30 फूल आते है। चाइना एस्टर की आधुनिक खेती से 1.8-2 टन प्रति हेक्टेयर फूलों का उत्पादन किया जा सकता है।
(ख) बीज उपज
जब बीज में 20 प्रतिशत नमी से कम हो तब ही बीज निकालना चाहिए। बीज की मात्रा उसकी किस्म पर निर्भर करती है।
फूलों की तुड़ाई
फूलों की गुणवत्ता और फूलों की पैदावार के लिए फूलों की तुड़ाई सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। फूलों की तुड़ाई का समय तथा फूलों को किस अवस्था में तोड़ना है यह इस बात पर निर्भर करता है की फूलों को किस उद्देश्य के लिए प्रयोग करना है। कटाई हमेशा शाम या सुबह के समय की जाती है। कट फ्लावर उद्देश्य के लिए हमें फूलों को कटाई के तुरत बाद साफ पानी में डालना चाहिए।
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