सेब बागवान अब बागवानी छोड़कर नौकरी करने पर मजबूर क्यों?
नई दिल्ली। सेब हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वर्ष 2022 और 2023 में सेब की फसल उगाने वाले बागवानों के लिए कुछ खास नहीं रहा। 2022 में सूखे ने बागवानी को तहस-नहस किया तो वहीं 2023 में आपदा ने बागवानों की फसलों को तबाह किया और इस वर्ष भी फिलहाल मौसम साथ देता हुआ नजर नहीं आ रहा है। सेब की बागवानी करने वाले किसानों के लिए जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी मुश्किल बन कर उभरा है।
सेब की बागवानी करने वाले किसानों का कहना है कि अब बागवानी करने से घाटा हो रहा है। एक समय था जब पहाड़ी राज्यों के लोग अपनी नौकरियां छोड़ कर बागवानी में आए थे और सफल भी हुए, लेकिन अब मौसम की मार के कारण स्थिति इसके विपरीत होती हुई नजर आ रही है। अब लोग बागवानी को छोड़कर नौकरी पेशे की ओर रुख करने लगे हैं।
पिछले दो वर्षों में बागवानी को भारी नुकसान
बता दें कि पहाड़ी राज्यों में पिछले 2 वर्ष बागवानी के लिए बेहद दुखद रहे हैं। 2022 में ड्राई स्पेल के चलते बागवानों को नुकसान हुआ तो वहीं 2023 में आपदा की मार झेलनी पड़ी। अब मौसम परिवर्तन के कारण बागवानों और किसानों को जलवायु परिवर्तन की बहुत बुरी मार झेलनी पड़ रही है।
क्या कहते है विशेषज्ञ ?
सेब विशेषज्ञों के अनुसार मौसम का असर चिलिंग ऑवर्स पर पड़ेगा, जिसके कारण उत्तराखंड, कश्मीर और हिमाचल में सेबों का उत्पादन कम हो सकता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि सेबों की फसल के लिए जो न्यूनतम चिलिंग ऑवर्स चाहिए होते हैं, वो बारिश और हिमपात न होने के कारण नहीं मिल पाए हैं।