असंतुलित पोषण प्रबंधन के कारण भारत में सेब उत्पादन घटा
शिमला: बगीचों में सही पोषण प्रबंधन न होने के कारण सेब की पैदावार में कमी आ रही है। कई बगीचों में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पैदावार कम हो रही है। डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र, मशोबरा के मृदा वैज्ञानिक डॉ. उपेंद्र शर्मा ने सेब किसानों को सलाह दी है कि वे उर्वरकों का सही और संतुलित इस्तेमाल करने के लिए अपनी मिट्टी का परीक्षण कराएं। गलत पोषण प्रबंधन के कारण पिछले कुछ सालों से सेब की पैदावार में गिरावट आयी है, गलत पोषण प्रबंधन इसका मुख्य कारण है।
डॉ. यशवंत सिंह परमार और अन्य विशेषज्ञों ने सेब उत्पादकों को उर्वरकों के उचित और संतुलित उपयोग के लिए मिट्टी का परीक्षण कराने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि उत्पादकता में गिरावट का कारण असंतुलित पोषण प्रबंधन है।अगर उर्वरकों का गलत मात्रा में इस्तेमाल किया जाए, तो मिट्टी में किसी पोषक तत्व की कमी हो सकती है। इसलिए बगीचों की पोषण स्थिति का सही मूल्यांकन करना बहुत जरूरी है।
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डॉ. शर्मा ने बताया कि जिन बगीचों में अधिक पैदावार होती है, वहां सेब तुड़ान के बाद तुरंत यूरिया का एक प्रतिशत (2 किलो/200 लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए। आमतौर पर सेब के बगीचों में फॉस्फोरस और पोटाश उर्वरक दिसंबर और जनवरी के महीने में डाले जाते हैं, इसलिए किसानों को इससे पहले अपनी मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए। मिट्टी के नमूने लेने का सबसे सही समय सेब तुड़ान के बाद अक्टूबर का महीना होता है।
केंद्र के सह निदेशक डॉ. दिनेश सिंह ठाकुर ने बताया कि मशोबरा स्थित केंद्र में मिट्टी के पोषक तत्वों की जांच की पूरी सुविधा उपलब्ध है, और वहां मिट्टी की जांच भी होती है।