farmers regarding banana cultivation

केले की खेती बदल रही है किसानों की जिंदगी, हो रही है लाखों की कमाई

नई दिल्ली।  केले की खेती से किसान आज के समय में बंपर कमाई कर रहे हैं। देश में ही नहीं यहां की केले की मांग विदेशी में भी ज्यादा है। किसानों में भी केले की खेती को लेकर जबरदस्त उत्साह है। किसान केले की फसल से बंपर कमाई कर रहे हैं। किसी भी पौधे की खेती करने के लिए उसके प्रजाति का बड़ा महत्व होता है। केला की रोबस्टा एवं बसराई प्रजाति के सबसे अच्छा माना माना जाता है।

इस तकनीकी से करें केले की बागवानी

तमिलनाडु विश्वविद्यालय ने अपने एक शोध पत्र में बताया है कि केले के बागवानी में प्रत्येक पंक्ति के बीच की दूरी 2×3 मीटर की दूरी होनी चाहिए। एक हेक्टेयर खेत में तकरीबन 5000 पौधे लगाए जाते हैं।  पौधे लगाने से पहले खेत में पोटाश, नाइट्रोजन व फास्फोरस की मात्रा मिलानी चाहिए। इस विधि से केले की उत्पादन में वृद्धि होती है। इस तरह आप केला की प्रथम फसल केवल 12 महीने में ही तैयार कर सकते हैं।

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केला के पौधे को कैसे लगाएं ?

कृषि विशेषज्ञ के अनुसार केले के पौधे के बीच की दूरी साढ़े 6 बाई साढ़े पांच फीट रखी जाती है। जिससे केले के पौधे में भरपूर विकास होता है। इसके बाद 50 सेंटीमीटर गहरा, 50 सेंटीमीटर लंबा और 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है। खोदे गए गड्ढों में 8 किलो कंपोस्ट खाद, 150-200 ग्राम नीम की खली, अगस्त के महीने में इन गड्ढों में केले के पौधों को लगाया जाता है।

केले की प्रमुख प्रजाति

भारत में अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग केले की खेती की जाती है। देश में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है बिहार के हाजीपुर का सिंगापुरी केला, स्वाद की दृष्टिकोण से यह काफी मीठा होता है।  हरी छाल, बसराई ड्वार्फ, G-9 वगैरह हैं रोबेस्टा फैमिली की दो प्रजातियां फेमस हैं। हरिछालऔर बांबे ग्रीन, दूसरी फैमिली है डवार्फ क्वैंडिस जिसके पौधे छोटे होते हैं। भुसावल और बसराई किस्में आती हैं। तीसरी फैमिली है,ज्वायंट क्वैंडिस जिसकी एक प्रजाति हैजी-9,जिसे टिश्यू कल्चर तकनीक से बहुत पहले से तैयार किया जाता है।

केले के खेती के लिए मौसम

केला मूलत:  एक उष्म कटिबंधिय फसल है। इसकी खेती के लिए 13 डिग्री, -38 डिग्री. सेंटीग्रेट तापमान अच्छा रहता है। इसकी फसल 75-85 प्रतिशत की सापेक्षिक आर्दता में अच्छी तरह बढ़ती है। भारत में ग्रैंड नाइन जैसी उचित किस्मों के चयन के माध्यम से इस फसल की खेती आर्द्र कटिबंधीय से लेकर शुष्क उष्ण कटिबंधीय जलवायु में की जा रही है।

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