फसलों और बागवानी पर नहीं पड़ेगा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, किस्में विकसित कर रहा ICAR

नर्सरी टुडे डेस्क

ICAR अब जलवायु परिवर्तन के अनुकूल किस्मों का विकास कर रहा है ताकि भविष्य में जलवायु परिवर्तन का फसलों और बागवानी पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, ICAR द्वारा जारी 250 किस्में ऐसी किस्में हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति प्रतिरोधी हैं।
नई दिल्ली। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) अब जलवायु परिवर्तन के हिसाब से किस्में विकसित कर रहा है, जिससे भविष्य में जलवायु परिवर्तन का फसलों और बागवानी पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। फिलहाल ICAR द्वारा 346 नई किस्में जारी की गई हैं, जिसमें 99 किस्में बागवानी की हैं। नई किस्मों में 250 किस्में ऐसी हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति प्रतिरोधी हैं।

ICAR के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने ‘नर्सरी टुडे’ को बताया कि ICAR द्वारा विकसित की गई इन किस्मों में उच्च तापमान, बीमारियों और सूखे से लड़ने की क्षमता है। इसके अलावा पशुपालन और मत्स्य पालन के लिए 30 प्रौद्योगिकियां विकसित की गई हैं और कई टीके भी तैयार किए गए हैं। दुधारू पशुओं में फैलने वाली लम्पी बीमारी के लिए भी एक टीका तैयार किया गया है।

PPP मॉडल से कृषि का होगा तेजी से विकास
ICAR के महानिदेशक ने बताया कि ICAR ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल को पूरी तरह से लागू करने का फैसला किया है। इसके तहत ICAR के सभी केंद्र और संस्थान कृषि अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार सेवाओं के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में काम करेंगे। पीपीपी के इस मॉडल के लिए नियम तैयार कर लिए गए हैं और उन्हें जल्दी ही लागू किया जाएगा। गाइडलाइन के तहत निजी क्षेत्र के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के जरिये रायल्टी देने की व्यवस्था से आगे की साझेदारी शुरू की जाएगी। इसमें निजी और सरकारी संस्थान मिलकर कृषि क्षेत्र के लिए शोध कर सकेंगे और उसके होने वाले आर्थिक फायदे में उनकी हिस्सेदारी होगी। इसके लिए 17 निजी कंपनियों के साथ (एमओयू) पर हस्ताक्षर भी किए गए हैं।

KVK की होगी अहम भूमिका
ICAR के कृषि प्रसार उप महानिदेशक डॉ. यूस सिंह गौतम ने कहा कि हम किसानों की उपज का सही बाजार मूल्य सुनिश्चित करने, अधिकतम कृषि तकनीकें किसानों तक पहुंचाने के लिए पीपीपी मॉडल के तहत निजी क्षेत्र की कंपनियों, स्टार्ट-अप और एफपीओ के साथ काम कर रहे हैं। किसानों की उपज को सही तकनीक, प्रसंस्करण और सही बाजार मिले, इसके लिए ICAR निजी क्षेत्र की कंपनियों, स्टार्ट-अप और एफपीओ के साथ मिलकर किसानों की आय बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। इसमें कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

सैटेलाइट मैपिंग के जरिए कार्बन क्रेडिट का आंकलन
डॉ. पाठक ने बताया कि ICAR निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहा है। इसमें कार्बन क्रेडिट का फायदा कैसे मिले, इसलिए हम कुछ मॉडल पर काम कर रहे हैं। आईएआई पूसा के निदेशक डॉ ए.के. सिंह ने कहा कि इसके बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम कर रहा है।

आईएआरआई के निदेशक डॉ ए.के. सिंह ने बताया कि कार्बन क्रेडिट के जरिए लाभ मिल सके, इसके लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ मिलकर सैटेलाइट मैपिंग के जरिए कार्बन क्रेडिट का आंकलन किया जाये। अभी तक के अनुभवों से हमने पाया है कि इस मैपिंग के जरिये आने वाले नतीजे 95 फीसदी तक सही हैं। पंजाब में निजी क्षेत्र की कंपनी म्हाइको और गो ग्रीन और अमेरिकी कंपनी इंडिगो किसानों के साथ मिलकर कर रही है। आईएआरआई इसके लिए एक ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर काम कर रहा है। अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्बन क्रेडिट लिए वेरा प्रोटोकॉल के तहत काम होता है।

कैसे ले सकते हैं कार्बन क्रेडिट का बेहतर लाभ ?
डॉ. ए.के. सिंह ने बताया कि देश में छोटे-मझोले किसानों की संख्या ज्यादा है इसलिए यहां की परिस्थिति के अनुसार किस तरह की व्यवस्था व्यावहारिक होगी, इस पर आईसीएआर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि अपने देश में कार्बन क्रेडिट का फायदा किसान समूह और एफपीओ के माध्यम से किसान बेहतर ले सकते हैं और आने वाले दिनों में कार्बन क्रेडिट किसानों के लिए आय का बड़ा स्रोत बन सकता है।