बेर के फलों की सड़न किसानों के लिए बनी समस्या
लखनऊ: बेर का पेड़, जिसका बोटोनिकल नाम Ziziphus mauritiana है, यह फल बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक होता है। खट्टे-मीठे स्वाद वाला यह छोटा सा फल खाने में स्वादिष्ट होने के साथ साथ पोषक तत्वों से भी भरपूर होता है। हालांकि, बेर के पेड़ के सड़न की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, जो किसानों के लिए चिंता का विषय बन चूका है।
फलों की सड़न का कई कारण हैं, मिट्टी और पौधे के मलबे में कीड़ों का जमा होना। जब फल पकने लगता है, तो इसमें हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखने लगते हैं जो बाद में बड़े होकर गहरे रंग में बदल जाते हैं। गीली और आर्द्र परिस्थितियों में यह रोग और तेजी से फैलता है और हवा व बारिश के जरिए फलों तक पहुंचता है।
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बेर के पेड़ को रोग से बचाने के लिए स्वच्छता और उचित खेती की तकनीकों का पालन करना ज़रूरी है। बगीचे की नियमित सफाई के साथ साथ संक्रमित फलों और मलबे को हटाना चाहिए, पेड़ों की छंटाई से वायु परिसंचरण बेहतर होता है और पेड़ों में रोग लगने के संभावना काम हो जाती है। बहुत अधिक सिंचाई से भी पेड़ों को बचाना चाहिए।
रासायनिक नियंत्रण के लिए तांबा आधारित यौगिकों और फफूंदनाशकों का इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए। जैविक उपायों में ट्राइकोडर्मा और बैसिलस प्रजातियों का प्रयोग भी प्रभावी माना जाता है।
भविष्य में, बेर की ऐसी किस्में विकसित की जा रही हैं जो रोग प्रतिरोधक हों। किसानों को नवीन तकनीकों के बारे में भी बताया जा रहा है ताकि बेर के पेड़ों को रोगों से बचाया जा सके। फलों को सड़ने से रोकने के लिए स्वच्छ खेती और उचित प्रबंधन बेहद जरूरी है, ताकि उपज और गुणवत्ता दोनों बेहतर हो सके।