पर्यावरण के लिए जीवन समर्पण

वाई पी सिंह

“कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो” – दुष्यंत कुमार

पर्यावरण का संरक्षण आज के दौर में एक समस्या की तरह देखा जाता है यह एक ऐसा पहलू है जो सब के साथ जुड़ा होने के बावजूद भी किसी एक अकेले का नहीं है. मानव जनजाति इस पर्यावरण का उपयोग तो भले ही अपने फायदे के लिए कर रही है लेकिन उसके संरक्षण के लिए नाम मात्र भी काम नहीं कर रही. ऐसे में पर्यावरणसंरक्षणके लिए इन हस्तियों ने छोटे पैमाने पर अपनी सक्रियता शुरू कीऔर उसे अपने अंजाम तक ले जाकर मानवता के लिए एक मिसाल कायम की.उन्होंने साबित कर दिया कीमानव की इच्छा शक्ति हर असंभव कार्य को भी संभव बना सकती है , उनके कार्यों ने इतना मजबूत प्रभाव डाला कि उनका नाम देश के चौथे सर्वोच्च पुरूस्कार पदम् श्री के लिए मनोनीत किया गया. और गत माह मार्च 2022 में राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

बसंतीदेवी (बसंतीदीदी)

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने प्रयासों के लिए जानी जाने वाली उत्तराखंड की प्रसिद्ध समाज सेविका बसंती देवी को पर्यावरण सरंक्षण के लिए उनके किए गए प्रयासों के लिए पदम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया।उन्होंने उत्तराखंड के पर्यावरण संरक्षण, पेड़ो व नदी को बचाने के लिए अपना अहम योगदान दिया है। बसंती देवी कौ सानी में स्थित लक्ष्मी आश्रम में रहती हैं। बसंती देवी ने पर्यावरण से लेकर समाज की कई कठोर नीतियों को दूर करने के लिए महिला समूहों का गठन किया। एक तरफ तो उन्होंने कोसी नदी को बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से जंगल को बचाने की मुहिम चलाई , तो दूसरी ओर घरेलू हिंसा और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए जन जागरण किए। यह बसंती देवी के द्वारा किये गए का प्रयासों ही फल है कि पंचायतों में महिलाओ के हितो में भी सुनवाई होने लगी , महिला सशक्तिकरण में उनके प्रयास का असर दिखा।उन्होंने महिलाओं को जोड़ कर वनों के विनाश को रोकने के लिए कई कार्य किये। इसका में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी। असफलता भी हाथ लगी लेकिन डट कर मुकाबला किया संकल्प से पीछे नहीं हटीं और फिर वह महिलाओं को समझाने में कामयाब हुईं कि अगर जंगल और पानी नहीं बचा तो कोसी घाटी की पूरी खेती भी बर्बादी की कगार पर आ जाएगी। इन सबके बाद ही पूरी घाटी में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई, इस अभियान की अगुवाई खुद महिलाएं कर रही हैं।अल्मोड़ा जिले के धौला देवी ब्लाक में आयोजित बालबाड़ी कार्यक्रमों में बसंती देवी ने शामिल हो कर समाज सेवा शुरू की। कौसानी से लोद तक पूरी घाटी में करीब 200 गांवों की महिलाओं का समूह बनाया। उन्होंने महिलाओं के सशक्तीकरण पर बल देते हुए साल 2008 में महिलाओं की पंचायतों में पकड़ मजबूत करने पर काम किया। पंचायतों में महिलाओं को भी आरक्षण मिला तो उन्होंने घरेलू हिंसा और पुरुषों की प्रताड़ना झेलती आर ही महिलाओं की मुक्ति के लिए मुहिम शुरूकी।उन्होंने वर्ष 2014 में 51 गांवों की 150 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की।

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद द्वारा सम्मानित श्रीमती बसंती देवी

किसान सेठपाल सिंह

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के नंदी, फिरोजपुर गांव के रहने वाले प्रगतिशील किसान सेठपाल सिंहकिसानों के लिए एक मिसाल है जो न केवल, नई तकनीक के साथउन्नत खेतीकोसीखने की ललकसे एकप्रगतिशील किसान बने बल्किअन्य किसानों को भी जागरूक किया।उन्हें अनोखी खेती के लिए पद्मश्री पुरस्कार पुरस्कार से सम्मानित किया गया.सेठपाल सिंह के नए नए परीक्षण और प्रयोग के माध्यम से खेती को नयी दिशा दी है।

सेठपाल सिंह 1995 से पहले पारंपरिक खेती करते थे जिसके बादकृषि विज्ञान केंद्र के सम्पर्क में आए और उन्होंने पारंपरिक फसलों के साथ-साथ अन्य फसलों जैसे फल-फूल और सब्जियों की खेती करना भी शुरू कर दिया। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से विभिन्न नवीन कृषि तकनीकों के बारे में सीखा। इसके बाद, अपनी खेती में उन्होंने नए प्रयोग एवं विविधीकरण अपनाएं। खेती में हमेशा कुछ करने की ललक ने उन्हें प्रगतिशील किसान बना दिया।सेठ पाल सिंह खेती में कोई नया प्रयोग करने से नहीं डरते, उनका मानना है कि किसान तब तक प्रगति नहीं कर सकते जब तक वे कुछ नया नहीं करते.” खेती में विविधिकरण के तहत उन्होंने तालाबों के बजाय अपने खेतों में सिंगाड़े की खेती की और कम लागत में अच्छा मुनाफ़ा कमाया। खेत की मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी न हो, इसके लिए उन्होंने अपने खेत में फसल अवशेष प्रबधन, वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट और नाडेप कम्पोस्ट यूनिट लगवाई। सेठपाल बहुफसली और रिले क्रॉपिंग तकनीक से खेती कर रहे हैं। सब्जी की फसलों में करेले के बाद लौकी और फिर पालक की खेती करते हैं। इस तरह से उन्हें प्रति एकड़ लगभग 4 लाख रुपये प्रति एकड़ का मुनाफ़ा होता है। इसे देखक्षेत्र के अन्य किसानों ने भी इसे अपनाया।

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद द्वारा सम्मानित किसान सेठपाल सिंह

अमाई महालिंग नाइक उर्फ टनल मैन

कर्नाटक केअमाई महालिंग नाइक को अभिनव शून्य-ऊर्जा सूक्ष्म-सिंचाई प्रणाली का उपयोग करके एक बंजर, ढलान वाले खेत को उपजाऊ खेत में बदल दिया ।कृषि के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें केंद्र सरकार द्वारा भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया है।
अमाई महालिंग नाइक दक्षिण कन्नड़ के एक मेहनती कृषक हैं। नाइक ने मंगलुरु से लगभग 50 किलोमीटर दूर, कर्नाटक के अद्यानाडका के पास विरल वनस्पतियों के साथ खड़ी पहाड़ियों के बीच एक सुपारी का बागान स्थापित करने की उम्मीद की थी। 77 वर्षीय व्यक्ति ने अपनी दो एकड़ जमीन में पानी भरने के लिए अकेले मेहनत की और सफलतापूर्वक एक मामूली वृक्षारोपण किया। उसने खुद सब कुछ किया क्योंकि खुदाई के लिए दूसरों को काम पर रखना बेहद महंगा होता।
फिर उन्होंने सुरंगों के प्रकार पर अपनी दृष्टि स्थापित की जिसका उन्होंने निर्माण करने का इरादा किया: सुरंगें जहां भूजल के लिए कठोर लेटराइट चट्टानों गहराई तक तक पहुंचना होता है, और जिसके माध्यम से पानी पंप के बिना एक छोटी सी धारा में लगातार चलता रहता है। उसने 30 मीटर की गहराई तक खुदाई करने के बाद हार मान ली और अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के फलस्वरूप एक अलग स्थान पर खुदाई शुरू कर दी। हालांकि, दूसरी सुरंग में 35 मीटर की गहराई पर पानी मायावी बना रहा। जब उन्हें 35 मीटर पर तीसरी और चौथी सुरंग खोदना बंद करना पड़ा, तो वे निराश हो गए क्योंकि उनकी चार साल की कड़ी मेहनत बेकार लग रही थी।लेकिन वह जानते थे कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती अतःउन्होंने पांचवीं सुरंग खोदनी शुरू की, जो ऊंची थी। अंत में, उसने 50 फीट पर छत पर गीलापन देखा। उन्हें अपने छठे प्रयास में पानी मिला, जो 315 फीट लंबा था। फिर, अपने घर के पीछे, नाइक ने पीने और घरेलू उपयोग के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए सातवीं सुरंग खोदी।
उनके दृढ़ संकल्प और दृढ़ता ने न केवल उन्हें पानी खोजने में मदद की बल्कि सभी सुरंगों की खुदाई पूरी करने के बाद पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की। 40 साल पुराने मॉडल फार्म ने नाइक के आत्मनिर्भर जीवन और दो एकड़ जमीन पर सुपारी, नारियल, काजू और केले के पौधे उगाने के रूप में समृद्ध परिणाम दिए हैं।
अमाई महालिंग नाइक का खेत एक आदमी की अविश्वसनीय आशावाद का जीता जागता सबूत है और उसने उसे छोटे किसानों के लिए एक आदर्श के रूप में स्थापित किया है।

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद द्वारा सम्मानित श्री अमाई महालिंग नाइक उर्फ टनल मैन