Farmers should adopt low tunnel technique to protect vegetables from frost in harsh winters

कड़ाके की ठंड में सब्जियों को पाले से बचाने के लिए किसान अपनाएं लो टनल तकनीक

नई दिल्ली। इन दिनों ठंड और शीतलहर का प्रकोप जारी है। तापमान में भारी गिरावट आई है, न्यूनतम तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। कड़ाके की ठंड एवं पाले का सबसे अधिक असर सब्जियों व फलों की फसलों पर पड़ने लगा है। सब्जियों व फलों की फसल को ठंड व पाले से बचाने के लिए विशेषज्ञों ने लो-टनल तकनीक अपनाने की सलाह दी जा रही है। फतेहाबाद जिले में  अधिकतम तापमान 14 डिग्री जबकि न्यूनतम तापमान चार डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। जिला उद्यान अधिकारी डॉ. श्रवण कुमार के अनुसार कड़ाके की ठंड एवं पाले से बचाव के लिए आने वाले दिनों में सब्जी एवं फल उत्पादक किसान विभिन्न प्रकार के उपाय कर सकते हैं। किसान लो-टनल तकनीक अपनाकर फसल को सर्दी एवं पाले से बचा सकते हैं। साथ ही बेमौसमी फसलों की काश्त करके अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे फसलों को सर्दी एवं पाले से बचाने के लिए लो-टनल तकनीक का उपयोग करें तथा फसलों की हल्की सिंचाई करते रहें। धुआं करके भी सब्जियों की फसलों को पाले से बचाया जा सकता है।

जिले में करीब 3500 एकड़ में है सब्जियों की काश्त
इस समय जिले में करीब 3500 एकड़ में सब्जियों की फसल ली जा रही है। किसानों द्वारा ली जाने वाली सब्जियों की फसल में मुख्य रूप से आलू, मटर, टमाटर, पत्तेदार सब्जियां शामिल है। कृषि मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार आने वाले समय में शीतलहर जारी रहेगी। रात्रि तापमान में भी हल्की गिरावट रहने की संभावना है। ऐसे में सब्जियों के बचाव के लिए किसानों को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।

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मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना से करवाएं बीमा
बागवानी किसान नुकसान से बचने के लिए मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना में सब्जियों व मसालों का 750 रुपये प्रति एकड़ प्रीमियम भरकर पंजीकरण कर सकते हैं। उद्यान विभाग द्वारा पाले से बचाव व अगैती फसलों की काश्त के लिए विभिन्न सब्जियों की फसलों पर अनुदान दिया जा रहा है, जिसमें लो-टनल, ड्रीप, बांस के सहारे सब्जी की खेती, मल्चिंग इत्यादि के साथ सब्जियों के काश्त करने पर 15000 रुपये प्रति एकड़ सब्जी उत्पादन के लिए, लगभग 25000 रुपये प्लास्टिक टनल प्रति एकड़, 31250 रुपये प्रति एकड़ बांस के सहारे सब्जी करने पर व 6400 रुपये प्रति एकड़ मल्चिंग के लिए अनुदान राशि दी जा रही है। पहले आओ पहले पाओ के आधार पर एक किसान के लिए अधिकतम 5 एकड़ तक लाभ देने का प्रावधान है।

क्या है लो-टनल तकनीक
डॉ. श्रवण कुमार के अनुसार लो-टनल तकनीक के जरिये फसलों को मौसम की मार से बचाया जा सकता है। किसान प्लास्टिक लो-टनल और नोन-वूवन क्लोथस का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। लॉ टनल संरचना का प्रयोग अत्यधिक सर्दी वाले क्षेत्रों में प्रभावी पाया गया है। लो-टनल ऐसी संरचना हैं, जिसमें खेत में एक मीटर चौड़ी क्यारियां तैयार की जाती हैं तथा उन पर टपका सिंचाई के लिए लाइन फैलाकर रख दी जाती है। अर्ध चंद्राकार संरचना बांस या पाइप को मोड़कर बनाई जाती हैं। इन तैयार क्यारियों पर आधा गोलाकार लोहे के तार जोड़कर बनाई गई संरचना को 75 से 110 सेंटीमीटर की दूरी तथा मध्य की ऊंचाई लगभग 80 सेंटीमीटर रखकर 1.5 से 2.0 मीटर के अंतराल पर जमीन में गाड़ कर लगाते हैं। फिर इसके ऊपर पारदर्शी प्लास्टिक जो 25 से 50 माइक्रोन मोटी होती है, उसे ओढ़ा दिया जाता है। अर्ध चंद्राकार संरचनाओं पर फिल्म चढ़ाकर उनके निचले हिस्सों को मिट्टी में दबाते जाते हैं। लो-टनल को धूप में खोले और रात को ढककर रखें। इससे उनका पाले व ठंड से बचाव होगा।

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