फरवरी का महींना पपीता की नर्सरी तैयार करने का उपयुक्त समय

सिमडेगा: उत्तर भारत में आमतौर से मार्च-अप्रैल का समय पपीता की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान  लगाए गए पौधों में विषाणु और फफूंद जनित रोगों का असर कम होता है। चूंकि फरवरी का महीना शुरू हो चुका है, इसलिए किसान नर्सरी की तैयारी में जुटे चुके हैं।

नर्सरी एक ऐसी जगह होती है जहां मुख्य खेत में लगाने से पहले पौधे उगाए जाते हैं। पपीते के लिए बीज की गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण होती है, इसलिए पहले नर्सरी में पौधे तैयार किए जाते हैं और फिर उन्हें खेतों में प्रत्यारोपित किया जाता है। नर्सरी क्षेत्र का चयन करते समय ध्यान देना चाहिए कि वहां जलभराव न हो, पर्याप्त धूप मिले, पानी की आपूर्ति आसान हो और वह क्षेत्र पालतू एवं जंगली जानवरों से सुरक्षित हो।

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पपीते के महंगे बीजों की नर्सरी तैयार करने से नुकसान कम होता है और पौधों की बेहतर वृद्धि सुनिश्चित होती है। इससे समय की भी बचत होती है और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी पौध तैयार की जा सकती है। यदि संभव हो तो मिट्टी का सोलराइजेशन प्लास्टिक टनल से ढककर किया जाना चाहिए। इसके अलावा, फॉर्मेलिन घोल, कैप्टन, थीरम जैसे कवकनाशकों और फुराडॉन, हेप्टाक्लोर जैसे कीटनाशकों का उचित मात्रा में प्रयोग करने से मिट्टी में रोगजनकों को नष्ट किया जा सकता है।

500 ग्राम बीज एक हेक्टेयर में पपीते के लिए पर्याप्त माना जाता है, जबकि रेड लेडी प्रजाति के लिए मात्र 100 ग्राम बीज काफी है। बीज बोने से पहले उसका उपचार करना जरूरी होता है। नर्सरी के लिए क्यारी को ऊंचा बनाया जाता है और उसमें पत्ती की खाद, बालू एवं सड़ी हुई गोबर की खाद का मिश्रण मिलाया जाता है। इस तरह उचित देखभाल से पपीते की अच्छी फसल प्राप्त की जा सकती है।