महाभारत कालीन पारिजात वृक्ष में आए पुष्प, देखने पहुंच रहे पर्यटक

नर्सरी टुडे डेस्क
बाराबंकी स्थित महाभारत कालीन एक पारिजात वृक्ष में इन दिनों पुष्प आए हैं। स्वर्ण आभा वाले ये पुष्प पर्यटकों को खासा लुभा रहे हैं। करीब चार माह के पतझड़ के बाद पहले इस वृक्ष में नई पत्तियां आईं और अब इस पेड़ में सैकड़ों की संख्या में सुंदर पुष्प निकले हैं, जो पर्यटकों को मोहित कर रहे हैं।

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश स्थित बाराबंकी जनपद के किंतूर गांव में पारिजात (Parijat tree) का एक प्राचीन वृक्ष मौजूद है, जिसे सरकार के द्वारा हेरिटेज वृक्ष का दर्जा दिया गया है। इस वृक्ष को ‘कल्पवृक्ष’ के नाम से भी जाना जाता है जिसका मूल अर्थ है मनोकामना पूरा करने वाला वृक्ष। इन दिनों इस पारिजात वृक्ष में पुष्प आए हैं। करीब चार माह के पतझड़ के बाद पहले इस वृक्ष में नई पत्तियां आईं और अब इस पेड़ में सैकड़ों की संख्या में सुंदर पुष्प निकले हैं, जो पर्यटकों को मोहित कर रहे हैं। यहां आने वाले सभी पर्यटक सुंदर पुष्पों के साथ खूब सेल्फी भी ले रहे हैं।

किवदंती के अनुसार, इस वृक्ष को खुद भगवान स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए थे। यह पूरी दुनिया में अपनी तरह एकमात्र दुर्लभ पेड़ है। यहां के पुजारी बाबा मंगलदास के अनुसार, इस वृक्ष की उम्र 5000 साल से भी ज्यादा है। हिंदू मान्यताओं के हिसाब से सफेद रंग के इस फूल को भगवान शिव को अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं। मंगलदास ने बताया कि इस बार वृक्ष में किसी प्रकार की कोई बीमारी नहीं है इसलिए इतनी तादाद में पुष्प आए हैं।

पारिजात वृक्ष से जुड़ी पौराणिक कहानी
पारिजात वृक्ष से जुड़ी हुई कई तरह की किंवदंतियां प्रचलित हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार भगवान कृष्ण अपनी पत्नी रुक्मणी के साथ थे, तभी नारद मुनि अपने हाथ में पारिजात का पुष्प लिए आए और उन्हें रुक्मणी को दे दिया। रुक्मणी ने इस फूल को अपने बालों में लगा लिया। पुष्प को देखकर उनकी दूसरी पत्नी सत्यभामा ने पूरे परिजात पेड़ की मांग की। इसके बाद भगवान कृष्ण ने इंद्र से पारिजात का पेड़ देने का अनुरोध किया, लेकिन इंद्र ने उनका अनुरोध ठुकरा दिया। इसके बाद युद्ध हुआ और इंद्र पराजित हुए। इस तरह युद्ध हारकर इंद्र को पारिजात का पेड़ सत्यभामा को सौंपना पड़ा। इस तरह यह वृक्ष धरती पर आ गया। लेकिन इसके बाद इंद्र ने इस वृक्ष को फल से वंचित रहने का श्राप दे दिया इसलिए इस वृक्ष में पुष्प तो आता है, पर फल नहीं आते हैं।

दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, देव-असुर संग्राम के समय समुद्र मंथन से परिजात वृक्ष निकला था। उसे देवताओं के राजा इंद्र अपने साथ स्वर्ग ले गए। द्वापर युग में भगवान कृष्ण के आदेश के बाद कुंती पुत्र अर्जुन उसे पृथ्वी पर लाए। महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुंती को भगवान शिव ने स्वर्ग के समान दिखने वाले पुष्प को अर्पित करने को कहा था। इस वृक्ष के पुष्प को जब कुंती ने भगवान शिव को अर्पित किया तो उन्होंने प्रसन्न होकर महाभारत युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया। वर्ष में एक महीने ही वृक्ष में पुष्प आते हैं, वहीं सावन के महीने में इस वृक्ष पर पुष्प आने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।

रहस्यमयी है यह पारिजात वृक्ष
माना जाता है कि बाराबंकी स्थित पारिजात वृक्ष गभग 50 फुट की गोलाई में फैला हुआ है, वहीं इसकी ऊंचाई 45 से 50 फुट है। इस गांव का नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर पड़ा है। इसके फूल रात में खिलते हैं और सुबह मुरझा जाते हैं। इस फूल की सुगंध दूर-दूर तक फैल जाती है। वनस्पति विज्ञानियों ने भी इस वृक्ष की आयु 5000 साल तक बताई है। इस पेड़ के बारे में एक और खास बात कही जाती है कि इसकी शाखाएं सूखती नहीं है, बल्कि शाखा पुरानी हो जाने के बाद सिकुड़ते हुए मुख्य तने में ही गायब हो जाती है।

औषधीय गुण से युक्त है यह वृक्ष
पारिजात वृक्ष औषधि गुणों से युक्त माना गया है। इसके बीज का सेवन करने से बवासीर रोग ठीक हो जाता है, वहीं इसके फूल हृदय रोग को ठीक करने में कारगर माने गए हैं। आयुर्वेद में भी इस वृक्ष के पुष्प, पत्तियों और बीज के फायदों का वर्णन मिलता है। त्वचा रोग के लिए परिजात की पत्ती उपयोगी मानी गई है।