GREEN WARRIOR: बस्तर के दामोदर कश्यप ने तैयार किया 400 एकड़ का जंगल
बस्तर के 79 वर्षीय आदिवासी दामोदर कश्यप पेड़ों के काटे जाने से इतने दुखी हुए कि 400 एकड़ से अधिक जमीन पर जंगल ही बसा दिया। अब उन पर छत्तीसगढ़ पाठ्यक्रम की 9वीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की किताब में एक लेख शामिल किया गया है ताकि आने वाली पीढ़ी जंगल का महत्त्व समझ सके।
नर्सरी टुडे डेस्क
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला जंगल के लिए प्रसिद्ध है। यह इसलिए भी क्योंकि यहां के आदिवासी पेड़ों को भगवान का दर्जा देते हैं, उसकी पूजा करते हैं और उसे संरक्षित करने का पूरा प्रयास करते हैं। यहां के निवासी आदिवासियों में जंगल को बचाने के लिए एक अलग तरह का ही जूनून देखने को मिलता है। इसी जिले के एक आदिवासी किसान हैं दामोदर कश्यप, जिन्होंने अपने दम पर 400 एकड़ जमीन पर जंगल बसा दिया।
जानकारी के मुताबिक, जिला बस्तर के संध करमरी गांव के 79 साल के बुजुर्ग आदिवासी ग्रामीण दामोदर कश्यप ने जंगल को देवता मानते हुए अपने जीवन का पूरा समय जंगल बनाने और उसकी रक्षा करने में लगा दिया। दामोदर कश्यप की उपलब्धि ये है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया है इसलिए उन्हें सही मायने में ‘हरित योद्धा” कहा जा सकता है।
दामोदर कश्यप ने ‘नर्सरी टुडे’ से बातचीत में कहा कि, ‘400 एकड़ से अधिक जमीन पर जंगल बनाना उनके लिए कतई आसान नहीं था। इसके लिए इच्छाशक्ति और समर्पण जरूरी है।‘ दामोदर कश्यप के अनुसार, जब वह वर्ष 1970 में 12वीं की पढ़ाई कर जगदलपुर से वापस अपने गांव पहुंचे तो उन्होंने देखा कि गांव के पीछे की जमीन में जहां कभी जंगल हुआ करता था, वहां अब एक भी पेड़ नहीं है।
सरपंच बनकर शुरू की पेड़ों को बचाने की मुहिम
दामोदर कश्यप ने बताया कि जब वन विभाग की तरफ से बहुत से पेड़ कूप कटाई के नाम पर काट दिए गए और बाकी बचे पेड़ों को गांव वालों ने साफ कर खेत बनाना शुरू कर दिया, तब उन्होंने पेड़ों को बचाने और इसके लिए लोगों को जागरूक करने का फैसला किया। शुरुआत में उन्हें ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी।
दामोदर कश्यप के अनुसार, वह वर्ष 1977 में गांव के सरपंच बने तो उनकी हिम्मत बढ़ी। इसके बाद वह इस मुहिम में ज़ोर-शोर से जुट गए। अभियान के तहत उन्होंने जिस जगह पहले जंगल हुआ करते था, वहां की ठूंठ (जड़ वाला हिस्सा) को भी बचाया ताकि प्राकृतिक तौर पर नए पौधे कोपल की तरह निकल सकें। इसके साथ ही उन्होंने बस्तर के मौसम के अनुकूल पौधों को लगाने का काम भी शुरू किया।
गांव के लोगों के लिए बनाया गया नियम
दामोदर जानते थे कि पौधे लगाने से ज्यादा बड़ी चुनौती है उन्हें बचाना इसलिए उन्होंने ग्रामीणों को इसके लिए तैयार कर एक नियम तैयार किया। इस नियम को उन्होंने ‘ठेंगा पाली’ (डंडा-पारी) का नाम दिया। इस नियम के तहत गांव के तीन सदस्य प्रतिदिन ठेंगा मतलब डंडा लेकर जंगलों की सुरक्षा करेंगे। इस डंडे को विधिवत कपड़े से लपेटकर देव का रूप दिया गया, जिसे जंगलों में घुमाना अनिवार्य बताया गया। इसके साथ ही सुरक्षा में नहीं जाने पर ग्रामीणों पर अर्थदंड भी लगाया जाने लगा।
इस दौरान यदि कोई जंगलों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता तो उसे भी पंचायत द्वारा अर्थदंड दिया जाता था। दामोदर के लगातार प्रयास से ग्रामीणों का भी हौसला बढ़ने लगा और उसी हौसले का फल है कि आज उनके गांव के आसपास 400 एकड़ में घना जंगल तैयार हो गया है। दामोदर बताते हैं कि उनके जंगल को देखने वन विभाग के अधिकारी भी आते हैं, और सबसे खास बात ये कि आज तक उनके जंगलों में कभी आग नहीं लगी है।
9वीं की किताब में पढ़ाया जाएगा दामोदर का संघर्ष
जंगल और पर्यावरण के प्रति इतना समर्पण होने के बावजूद दामोदर कश्यप को वो पहचान नहीं मिल पाई, जो उन्हें मिलनी चाहिए थी। हालांकि समय-समय पर उनका जिक्र कई जगहों पर होने लगा था। यही वजह है कि आज छत्तीसगढ़ पाट्यक्रम की 9वीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की किताब में दामोदर पर लेख छापा गया है, जिसे आने वाली पीढ़ी उनके बारे में जान सके। दामोदर आज देश के सभी राज्यों में जाकर पर्यावरण बचाने वाली संस्थाओं के साथ मिलकर चर्चा करते हैं कि पेड़ों को बचाने और कौन-कौन से कदम उठाए जाने चाहिए।
प्रकृति के लिए उनके समर्पण को देखते हुए स्विट्जरलैंड और फिलीपींस ने उन्हें सम्मानित किया है। दामोदर कश्यप बताते हैं कि जितनी तेज रफ्तार से जंगल काटे जा रहे हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। ऐसे में पर्यावरण को लेकर अभी भी लोगों को जागरूक हो जाना चाहिए।
10 एकड़ में फैली है नर्सरी
वर्तमान में ग्रामीणों ने विभिन्न किस्मों के पौधे उगाने के लिए नर्सरी बनाई है। इसके लिये 10 एकड़ भूमि का उपयोग किया जा रहा हैं। गांव के निवासी परितोष मंडल ने ‘नर्सरी टुडे’ को बताया कि कश्यप के प्रयास से करमारी गांव के लोग जंगल बचाने के लिए प्रेरित हुए। हम जंगल में बहुत शांति महसूस करते हैं। हरियाली ने यहां की जलवायु को बदल दिया है।
बस्तर के मुख्य वन संरक्षक मो. शाहिद खान कहते हैं कि जब वह बस्तर डीएफओ थे, तब उन्होंने करमारी गांव के निवासियों द्वारा किए जा रहे वन संरक्षण प्रयासों के बारे में सुना। वह जंगल देखने भी गए थे और दामोदर कश्यप के नेतृत्व में ग्रामीणों द्वारा किए गए वृक्षारोपण को देखकर बहुत खुश हुए। वन विभाग हमेशा उनकी मदद करता रहा है और आगे भी करता रहेगा।