वर्ष भर उगाइए गुलदाउदी के फूल
‘जाड़े की रानी’ के रूप में प्रसिद्ध गुलदाउदी का फूल दिखने में बहुत आकर्षक होता है और इसीलिए बाजार में इसकी डिमांड रहती है मगर बागवानों की दिक्कत ये है कि वे इसका व्यवसाय सर्दी के मौसम में ही कर पाते हैं। उनकी इस समस्या को बागवानी अनुसंधान केंद्र, धौलाकुआं के वैज्ञानिकों ने सुलझा लिया है। अब बागवान इसका उत्पादन पूरे साल ले सकेंगे।
दरअसल, पिछले वर्ष क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र, धौलाकुआं के वैज्ञानिकों ने दिसंबर में तैयार होने वाले गुलदाउदी को जुलाई माह में उगाने में सफलता हासिल की। वैज्ञानिकों ने गुलदाउदी के बेमौसमी उत्पादन के लिए पॉलीटनल तकनीक का इस्तेमाल किया। उन्होंने हाई डेनसिटी पॉलीशीट से गर्मियों में सर्द मौसम की तरह दिन छोटे कर दिए। इन फूलों को पॉलीटनल में शाम चार से सुबह नौ बजे तक तिरपाल से डेढ़ माह ढककर ब्लैक आउट किया गया। फूल तैयार होने पर तिरपाल हटा दी गई। इस तकनीक से सूर्य की रोशनी को नियंत्रित किया गया। वैज्ञानिकों का यह शोध पूरी तरह सफल रहा। धौलाकुआं में गुलदाउदी के ‘सर्फ’ किस्म का उत्पादन किया गया। इसमें व्हाइट स्टार, येलो स्टार, पूर्णिमा, स्प्रै आदि 25 तरह की किस्में हैं।
डॉ. वाईएस परमार बागवानी विवि के फ्लोरीकल्चर विभागाध्यक्ष डॉ. एसआर धीमान और क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र, धौलाकुआं की प्रमुख पुष्प वैज्ञानिक डॉ. प्रियंका ठाकुर ने ‘नर्सरी टुडे’ से बातचीत में कहा कि पुष्प उत्पादन किसानों की कमाई का बेहतरीन जरिया है। इस नए शोध से अब पूरे साल गुलदाउदी किस्म के फूलों की खेती की जा सकेगी।
गौरतलब है कि दिल्ली, चंडीगढ़, देहरादून, हरियाणा आदि राज्यों में गुलदाउदी की काफी ज्यादा मांग रहती है। दिल्ली में आमतौर पर इसकी मांग 250 से 300 रुपये किलोग्राम तक रहती है। नए शोध से गुलदाउदी के उत्पादन से जुड़े किसानों को सीधा फायदा होगा। उन्हें दिसंबर माह का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। वे इसका उत्पादन मार्च, अप्रैल माह में भी कर सकते हैं। ल्ल
उगाइए ‘शेखर’ किस्म, जल्द नहीं मुरझाएंगे फूल
सर्दियों के मौसम में घने कोहरे और ठंड के कारण अधिकतर पौधे मुरझाने लगते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने गुलदाउदी की ऐसी किस्म विकसित की है, जो सर्दियों के अंत तक खिली रहेगी। ‘शेखर’ नामक यह गुलदाउदी की देर से खिलने वाली किस्म है, जिसके फूल दिसंबर के अंत से फरवरी के बीच खिलते हैं।
गुलदाउदी की इस प्रजाति के फूल गुलाबी रंग के होते हैं और इसका आकार मुकुट की तरह होता है। इसके फूलों की पंखुड़ियां मुड़ी होती हैं, जिसके कारण यह सामान्य गुलदाउदी फूलों से अलग दिखाई देता है। गुलदाउदी की इस नई किस्म के पौधों की ऊंचाई करीब 60 सेंटीमीटर और व्यास 9.5 सेंटीमीटर तक होता है। इसे राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) लखनऊ के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है।
एनबीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अरविंद जैन ने ‘नर्सरी टुडे’ कोे बताया कि पौधों के गुणों के लिए जिम्मेदार जीन्स का पता लगाने के लिए उनका अनुवांशिक एवं आण्विक स्तर पर अध्ययन किया जाता है। इसी तरह के एक अध्ययन में यह नई किस्म गुलदाउदी की सु-नील नामक प्रजाति में गामा विकिरण द्वारा अनुवांशिक संशोधन करके विकसित की गई है। ‘सु-नील’ एनबीआरआई के जर्म प्लाज्म भंडार में शामिल गुलदाउदी की एक प्रमुख प्रजाति है।
गुलदाउदी की देर से खिलने वाली अन्य प्रमुख किस्मों में सीएसआईआर-75, आशा किरण, पूजा, वसंतिका, माघी व्हाइट, गौरी और गुलाल शामिल हैं, जिन पर दिसंबर से फरवरी के मध्य फूल खिलते हैं, जबकि, कुंदन, जयंती, हिमांशु और पुखराज गुलदाउदी की सामान्य सीजन की किस्में हैं, जिन पर नवंबर से दिसंबर के बीच फूल आते हैं। अगेती किस्मों में विजय, विजय किरण और एनबीआरआई-कौल शामिल हैं, जिन पर प्राय: अक्टूबर के महीने में फूल खिलते हैं।
बता दें कि एनबीआरआई द्वारा गुलदाउदी की करीब 230 किस्में विकसित की गई हैं। इनमें विभिन्न आकार व रंगों की किस्में शामिल हैं। अगस्त में मानसून के दौरान गुलदाउदी के फूलों की जड़युक्त कटिंग मोरंग के करीब एक फीट मोटे बेड पर लगाई जाती है, जिसे बाद में गमलों में लगाया जा सकता है।