Hi Tech Farming: ग्वालियर में बनेगी मध्य प्रदेश की पहली हाईटेक फ्लोरीकल्चर नर्सरी और एरोपोनिक लैब
संरक्षित खेती के दौर में नित नई स्थापनाएं हो रही हैं। हाइड्रोपोनिक, एयरोपोनिक, वर्टिकल फ़ार्मिंग आदि इसी का हिस्सा हैं यानि बिना मिट्टी की खेती दिनों दिन ज़ोर पकड़ रही है। सरकार और सरकारी संस्थाएं भी इसे आगे बढ़ाने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं। इसी कड़ी में मध्य प्रदेश सरकार ने ग्वालियर में हाईटेक नर्सरी युक्त एयरोपोनिक लैब जल्द बनाने की घोषणा की है। एयरोपोनिक लैब में उच्च गुणवत्ता युक्त आलू का उत्पादन किया जाएगा।
मध्य प्रदेश के उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सिंह कुशवाह ने ‘नर्सरी टुडे’ से आलू के उत्पादन में हमारा राज्य देश में छठे पायदान पर है। राज्य में आलू का उत्पादन बढ़ाने में फसल पर लगने वाले रोग बाधक बन गए थे। मध्य प्रदेश सरकार ने तकनीक की मदद से इस समस्या का समाधान निकाला। इसके फलस्वरूप राज्य सरकार ने एयरोपोनिक तकनीक की मदद से रोग रहित उच्च गुणवत्ता वाले आलू का बीज इस तकनीक से उपजाने के लिए ग्वालियर में प्रदेश की पहली एयरोपोनिक लैब और हाईटेक नर्सरी बनाने का फैसला 2022 में ही कर लिया था। उम्मीद है कि अगले फसली सीजन में राज्य के आलू किसानों को एयरोपोनिक तकनीक से उपजाए गए आलू के बीज की आपूर्ति होने लगेगी। यह लैब बनाने के लिए शिवराज सरकार का कृषि तकनीक से जुड़ी अग्रणी कंपनी एग्रीनोवेट इंडिया लिमिटेड के साथ करार कर चुका है।
राज्य मंत्री कुशवाह ने बताया कि उद्यानिकी विभाग के प्रस्ताव पर भोपाल में फ्लावर डोम निर्माण को भी जल्द ही शुरू किया जायेगा। इसके लिये कार्य-योजना तैयार की गई है। फ्लावर डोम के लिये मण्डी बोर्ड और उद्यानिकी विभाग के एमआईडीएच कार्यक्रम से 836 लाख रूपये की राशि उपलब्ध कराई जा रही है।
अब नहीं होगी बीज की कमी
मध्य प्रदेश सरकार का मानना है कि राज्य के आलू उत्पादक किसानों को मांग के अनुरूप आलू के बीज की आपूर्ति नहीं हो पाती है। एयरोपोनिक तकनीक से बीज के उत्पादन में 10 से 12 प्रतिशत तक उपज में इजाफा हो जाता है। राज्य सरकार का दावा है कि ग्वालियर में एयरोपोनिक लैब बनने से बीज की भरपूर सप्लाई हो सकेगी। इस तकनीक से उपजे बीज के इस्तेमाल से फसल की उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है।
क्या है एयरोपोनिक तकनीक
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शिमला स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने हवा में आलू का बीज तैयार करने वाली इस अनूठी तकनीक को ईजाद किया है। इसके तहत पौधे की जड़ों को मिट्टी से मिलने वाले पोषक तत्वों का पानी की फुहार के माध्यम से जड़ों पर छिड़काव किया जाता है। इससे पहले बीज को नमी युक्त अंधेरे बॉक्स में रख कर पौधे तैयार की जाती है। बीज से निकला पौधा बॉक्स से बाहर आकर हवा में रहता है, जबकि पौधे की जड़ें अंधेरे बॉक्स में होती हैं।
इन पर पोषक तत्वों का स्प्रे किया जाता है। जड़ों को पोषक तत्व और हवा में मौजूद पौधे की तेज ग्रोथ होती है। इन जड़ों पर पोषक तत्वों के लगातार स्प्रे होने से एक जड़ से आलू के 35 से 60 बीज मिलते हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार चूंकि इस विधि में मिट्टी का इस्तेमाल नहीं होता है इसलिए इसके बीज मिट्टी जनित रोगों से मुक्त होते हैं।
मध्य प्रदेश में आलू की खेती का दायरा
राज्य मंत्री कुशवाह ने कहा कि एमपी में ‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ODOP योजना के तहत ग्वालियर जिले के विशिष्ट उत्पाद के रूप में आलू को शामिल किया गया है इसलिए ग्वालियर में हाईटेक नर्सरी और एयरोपोनिक लैब बनाने का निर्णय किया गया है। उन्होंने कहा कि एमपी में हर साल औसतन 4 लाख टन आलू के बीज की जरूरत होती है। इस जरूरत को 10 लाख मिनी ट्यूबर क्षमता वाली एयरोपोनिक लैब से पूरा करने में मदद मिलेगी।
कुशवाह ने कहा कि मध्य प्रदेश में मालवा संभाग आलू का मुख्य उत्पादक क्षेत्र है. इसके अलावा ग्वालियर, देवास, शाजापुर, और भोपाल जिलों में भी आलू की खेती व्यापक पैमाने पर होती है, वहीं छिंदवाड़ा, सीधी, सतना, रीवा, राजगढ़, सागर, दमोह, जबलपुर, पन्ना, मुरैना, छतरपुर, विदिशा, बैतूल और रतलाम जिलों के कुछ इलाकों में भी आलू की खेती की जाती है।