कलिहारी: उगाएँ जड़ी-बूटी वाली फसल, कमाएं बढ़िया मुनाफा
कलिहारी जड़ी-बूटी वाली फसल है। इसके पत्तों, बीजों और जड़ों आदि का उपयोग दवाइयों के निर्माण में होता है, जिस कारण बाजार में इसकी अच्छी मांग है। इसकी खेती के लिए उपयुक्त महीना जुलाई से अगस्त है।
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नर्सरी टुडे डेस्क
नई दिल्ली। कम लागत में बड़ा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो कलिहारी (Gloriosa superba) की खेती आपके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकती है। इसे संस्कृत में ‘अग्निशिखा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक जड़ी-बूटी वाली फसल है, जो बहुत हद तक किसी बेल की तरह बढ़ती है। इसके पत्तों, बीजों और जड़ों आदि का उपयोग दवाइयों के निर्माण में होता है। इससे बनने वाली दवाइयाँ जोड़ों के दर्द, एंटीहेलमैथिक आदि के उपचार में सहायक हैं। इसके अलावा इससे कई तरह टॉनिक और पीने वाली दवाइयां भी बनाई जाती है, जिस कारण बाजार में इसकी अच्छी मांग है।
कैसा होता है पौधा
इस पौधे की औसतन ऊंचाई 3.5 से 6 मीटर तक हो सकती है। इसके पत्तों की लंबाई 6-8 इंच होती है, जो डंठलों के बिना होते हैं। इनके फूलों का रंग हरा और फल 2 इंच लंबे हो सकते हैं।
मिट्टी
वैसे तो इसकी खेती हर तरह की मिट्टी में हो सकती है, लेकिन लाल दोमट या रेतीली मिट्टी इसके विकास में अधिक सहायक है। मिट्टी का पीएच मान 5.5-7 तक होना चाहिए।
खेत की तैयारी
कलिहारी को बिजाई से पहले खेतों को भुरभुरा और समतल बनाना जरूरी है। मिट्टी की जुताई 2 से 3 बार करें। पानी की निकासी के लिए मार्ग बनाएं।
बिजाई का समय
इसकी बिजाई के लिए जुलाई से अगस्त तक का महीना फायदेमंद है। बिजाई के समय ध्यान रखें कि पौधों में 60×45 सेमी तक का फासला हो। बीजों को 6-8 सेमी की गहराई में बोयें।
सिंचाई
इसकी फसल को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है। फिर भी अच्छी फसल के लिए 5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। बरसात के दिनों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। फल पकने के समय दो बार सिंचाई करना फायदेमंद है।
कटाई
इसके फलों के रंग हरे होने के बाद इसकी तुड़ाई की जाती है। इसी तरह गांठों की कटाई-बिजाई से 5-6 साल के बाद की जाती है।
पैदावार एवं बाजार भाव
कलिहारी की खेती से प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष 200-300 किग्रा बीज एवं 150-200 किग्रा छिलके प्राप्त होते हैं। 4 से 5 वर्षों के अंतराल पर 2-3 टन सूखे प्रकंद भी प्राप्त किये जा सकते हैं। कलिहारी के बीजों एवं छिलकों का वर्तमान औसत बाजार भाव 1000-1200 रुपये प्रति किग्रा एवं सूखे प्रकंद का भाव 360-700 रुपये प्रति किग्रा तक है। इस प्रकार 5 वर्ष में प्रति हेक्टेयर औसतन लगभग 36 लाख रुपये तथा अधिकतम 51 लाख रुपये मूल्य तक की उपज प्राप्त हो सकती है।