गौरा गांव में सिमटती बेर की बागवानी ने बढ़ाई किसानों की चिंता
वाराणसी: जौनपुर जिला का गौरा गांव कभी बेर की बागवानी के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन अब धीरे-धीरे इसमें कमी आ गयी है। करीब 40 साल पहले यहां 3,000 बेर के पेड़ हुआ करता था, जो अब घटकर सिर्फ 100 पेड़ ही रह गए हैं। इस गिरावट के कारण कई परिवारों की आजीविका पर संकट गहराने लगा है, क्योंकि बेर की खेती उनकी कमाई का एक मात्र साधन है।
गौरा गांव, गजेंद्रपुर और भेलूपुर के साथ, पिछले 50 वर्षों से अमरूद और बेर की बागवानी के लिए मशहूर रहा है। गोमती नदी के किनारे तीन किलोमीटर के दायरे में सैकड़ों एकड़ जमीन पर बागवानी की जाती थी। इस क्षेत्र में सैकड़ों किसान बेर और अमरूद की खेती से अपनी रोजी-रोटी चलाते थे। लेकिन सरकारी मदद की कमी के कारण अमरूद की खेती लगभग समाप्त हो चुकी है और अब बेर की खेती भी संकट में है।
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40 साल पहले 100 किसानों के पास 3,000 पेड़ थे। हर साल 12,000 क्विंटल बेर का उत्पादन होता था।अब केवल 10-12 किसान ही बेर की बागवानी कर रहे हैं, सिर्फ 100 पेड़ बचे हैं। उत्पादन घटकर 3,000 क्विंटल रह गया है। एक पेड़ से औसतन 4 क्विंटल बेर ही मिल रहा है।
इस विषय पर जब जिला उद्यान अधिकारी सीमा सिंह राणा से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि उन्हें गौरा गांव की बागवानी की जानकारी नहीं थी। लेकिन अब नए वित्तीय वर्ष में एक योजना तैयार की जाएगी, जिससे किसानों को बागवानी के लिए जागरूक किया जाएगा और बेर की खेती को फिर से बढ़ावा मिलेगा।
यहाँ के किसानों का कहना है कि सरकार बागवानी को मज़बूत करने और बचाने के लिए योजनाएं लाए। यदि सरकार के तरफ से सही मदद और मार्गदर्शन मिले, तो बेर की खेती को दोबारा बहाल किया जा सकता है, और इस पर निर्भर रहने वाले किसानों की आजीविका सुरक्षित रह सकती है।