बारिश की कमी है तो कर सकते हैं गेंदे की खेती
नर्सरी टुडे डेस्क
नई दिल्ली। देश के अधिकतर क्षेत्रों में मानसून पहुंच चुका है। इसके बावजूद अभी भी कई क्षेत्र बारिश की कमी से जूझ रहे हैं। इस वजह से किसानों को खरीफ फसल की बुवाई में दिक्कत आ रही है। इसका हल निकाला है महाराष्ट्र के एक किसान ने, जिसे अन्य किसान भी अपना सकते हैं। दरअसल, नासिक जिले के चांदवड तालुका के वराडी गांव के रहने वाले किसान नंदू पवार ने इस साल एक एकड़ खेती में गेंदा लगाया है। पवार की मानें तो उन्होंने पानी की कमी के कारण पहली पर प्रयोग के तौर पर इसकी खेती की क्योंकि इसकी खेती में कम पानी लगता है। पवार के अनुसार, उनके गांव में खेती के लिए पानी नहीं बचा है। पीने के लिए पानी टैंकर से आता है। ऐसे में उन्होंने ज्यादा पानी की खपत वाली खेती छोड़कर फूल की खेती की। उनके पास तीन एकड़ की खेती है जिसमें उन्होंने प्रयोग के तौर पर इसे एक एकड़ में लगाया है।
फूल की खेती में अच्छा मुनाफा
पवार ने नर्सरी टुडे को बताया कि गणपति का त्योहार आने वाला है। उम्मीद है कि गेंदा की खेती में अच्छा मुनाफा मिलेगा। मई में इसके फूल की खेती की थी और अब इसकी हार्वेस्टिं ग होने वाली है। पवार ने बताया कि कुछ प्रगतिशील किसानों ने इसकी खेती के लिए सलाह दी थी और पानी की कमी वाले क्षेत्र में यह सलाह बहुत अच्छी साबित हुई है। अभी बाजार में 70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से गेंदे का फूल बिक रहा है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में और अच्छा भाव मिलेगा।
एक एकड़ में कितनी लागत
पवार ने बताया कि एक एकड़ में गेंदा फूल की खेती करने पर 35 हजार रुपये की लागत आई है। अगले 15 दिन में हार्वेस्टिंचग होने लगेगी। उम्मीद है कि सूखा प्रभावित क्षेत्र में यह प्रयोग अच्छा साबित होगा। उन्होंने जल्दी तैयार होने वाली किस्म की बुवाई मल्चिंमग पेपर के जरिए की है। इसमें शक नहीं कि इसकी खेती इस क्षेत्र के दूसरे किसानों को भी एक नया रास्ता दिखाएगी। दरअसल जहां पर पानी की कमी है वहां पर खेतों की सिंचाई में किसानों का बहुत पैसा खर्च हो जाता है। ऐसे में कम सिंचाई वाली फसल सफल हुई तो अन्य किसानों के लिए भी फायदे का सौदा होगा।
कब कर सकते हैं खेती?
गेंदा मुख्य रूप से ठंडी जलवायु वाली फसल है ठंड के मौसम में गेंदे की वृद्धि और फूलों की गुणवत्ता अच्छी होती है। जलवायु परिस्थितियों के आधार पर गेंदे की खेती मानसून, सर्दी और गर्मी तीनों मौसमों में की जाती है। फरवरी के पहले सप्ताह के बाद और जुलाई के पहले सप्ताह से पहले अफ्रीकी गेंदा लगाने से उपज और फूलों की गुणवत्ता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है इसलिए जुलाई के पहले सप्ताह से 15 दिनों के अंतराल पर बुवाई करने पर अक्टूबर से अप्रैल तक अच्छी उपज प्राप्त होती है, लेकिन सबसे ज्यादा पैदावार सितंबर में लगाए गए गेंदे से होती है।
कैसे होनी चाहिए मिट्टी?
गेंदा को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। उपजाऊ, जल धारण करने वाली लेकिन अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी गेंदा की खेती के लिए अच्छी होती है। गेंदा 7.0 से 7.6 के सतह क्षेत्र वाली मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ता है। गेंदे की फसल को धूप की बहुत जरूरत होती है। पेड़ छाया में अच्छे से बढ़ते हैं लेकिन फूल नहीं आते।
उन्नत किस्में
अफ्रीकन गेंदा : क्लाईमेक्स, कोलेरेट, जुबली इंडियन चीफ, क्राउन ऑफ गोल्ड, फर्स्ट लेडी, स्पन गोल्ड, येलोसुप्रीम, क्रेकर जेक।
फ्रेंच गेंदा: येलो क्राउन, लेमन जैम, रस्ती लैड, लेमन रिंग, रेड हेड, बटर स्कोच, गोल्डी, फायर क्रॉस।
उन्नत किस्म: पूसा नारंगी, पूसा बसंती।
संकर किस्म: इंका, माया, एटलांटिक, डिस्कवरी।
भूमि की तैयारी
एक गहरी जुताई कर तीन-चार जुताई कल्टीवेटर से कर खेत को तैयार करें तथा अंतिम जुताई से पहले 25 टन गोबर की अच्छी पकी खाद खेत में मिलाएं।
नर्सरी बुवाई एवं रोपाई
गेंदे की नर्सरी के लिए जमीन से 15-20 सेमी ऊंची क्यारियां तैयार करना करें क्यारियों का आकार तीन बाय एक मीटर रखे। बीज बुआई से पहले क्यारियों को 0.2 फीसदी बाविस्टीन से उपचारित करें ताकि पौध में फफूंदजनित रोग न लगे। जमीन को 30 सेमी गहराई तक खोदकर भुरभुरा एवं समतल बना लें और सड़ी गोबर खाद मिलाकर फैला दें। बीजों को कतारों में बोकर ऊपर से खाद एवं मिट्टी के मिश्रण से बीजों को ढंककर फव्वारे से हल्की सिंचाई करें।
बीज दर: सामान्य किस्मों में एक से डेढ़ किलोग्राम। संकर किस्मों में 700-800 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है।
पौध रोपण एवं दूरी
जब पौधा 10-15 सेमी तथा 3-4 पत्तियों का हो जाए, तब शाम के समय पौधों की रोपाई करें। सामान्यत: 25-30 दिन में पौधा रोपाई के लायक हो जाता है। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें। अफ्रीकन गेंदा को 45 बाय 45 सेमी की दूरी पर लगाए। एक हेक्टेयर में रोपाई करने पर 50 से 60 हजार पौधे की जरूरत होगी। इसी तरह फ्रेंच गेंदे को 25 बाय 25 पौधे से कतार एवं कतार से कतार की दूरी पर रोपे। इसमें प्रति हेक्टेयर डेढ़ से दो लाख पौधें की जरूरत पड़ती है। सिंचाई के पर्याप्त साधन हैं तो अगस्त के अंतिम सप्ताह तक पौधे रोप सकते हैं।