Kalmegh is a medicinal plant.

कालमेघ की खेती से कम लागत से ज्यादा कमाई

नई दिल्ली। कालमेघ एक औषधीय पौधा है। इसे बोलचाल के भाषा में कडु चिरायता के नाम से भी जाना जाता हैं। इसका वानस्पतिक नाम एंड्रोग्राफिस पैनिकुलाटा हैं। यह शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाया जाता हैं। इस पौधे की ऊंचाई लगभग 1 से 3 फीट होती हैं। इसके बीज से पौधा तैयार किया जाता हैं। कालमेघ का प्रयोग अनेकों आयुर्वेदिक होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाइयों के निर्माण में किया जाता है। आयुर्वेद में कहा जाता गया हैं कि यह कई सारे विकारों को दूर करता है। रक्त विकार संबंधित में रोगों में यह कारबर है। विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों को दूर करने में इसका उपयोग किया जाता है। इसके की गुणवत्ता के कारण औषधि पौधों में विशेष स्थान प्राप्त हैं।

जलवायु

इसकी खेती पूरे भारतवर्ष में हो सकती हैं। बिहार, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात तथा राजस्थान के प्राकृतिक वनों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं। इसके खेती के लिए न्यूनतम तापमान 5 से 15 तक अधिकतम तापमान 35 से तक हो सकता हैं।खेत के जुताई के पहले 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की पकी खाद मिला देना चाहिए। कालमेघ की खेती सीधे बीज की बुवाई कर या पौधे तैयार कर की जा सकती हैं।

कालमेघ की खेती की अगर सही तरीके से जैविक खाद एवं उर्वरक के उपयोग से की जाए तो इसकी खेती से अच्छी पैदावार हो सकती हैं। इसके प्रति हेक्टेयर के खेत से करीब 2 से 4 टन सूखी शाखाएं प्राप्त की जा सकती है। जिनका बाजार भाव 15 से 50 रुपए प्रति किलोग्राम तक हो सकता है।