मशरूम फार्मिंग: कमाई का मार्ग
नई दिल्ली : भारत में कृषि विविधता का एक प्रमुख हिस्सा बनने के लिए मशरूम की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इस व्यवसाय की खासियत यह है कि कम जगह, कम लागत और कम समय में इसे आसानी से शुरू किया जा सकता है। मशरूम न केवल पौष्टिक भोजन है, बल्कि इसका उपयोग औषधियों में भी होता है, जिससे इसका बाजार मूल्य अधिक रहता है ।
परिचय:
मशरूम की खेती: लाभ, वर्तमान स्थिति और संभावनाएं मशरूम की खेती की सबसे बड़ी विशेषता इसकी विविध किस्मों की खेती को पूरे साल किया जा सकना है, जिससे किसानों को साल भर आय प्राप्त होती रहती है। पिछले कुछ वर्षों में, भारत में किसानों का रुझान मशरूम की खेती की ओर बढ़ा है क्योंकि यह कम लागत, कम जगह, और समय में भी अधिक मुनाफा देता है। बाजार में मशरूम की अच्छी कीमत मिलने के कारण यह बेहतर आमदनी का स्रोत बन सकता है। मशरूम की खेती का प्रशिक्षण किसी भी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालय से लिया जा सकता है।
विश्व स्तर पर मशरूम की खेती हजारों वर्षों से होती आ रही है, जबकि भारत में इसका इतिहास लगभग तीन दशक पुराना है। पिछले 10-12 वर्षों में भारत में मशरूम उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, और तेलंगाना जैसे राज्य मुख्य उत्पादक हैं। वर्ष 2019-20 में भारत में मशरूम का उत्पादन लगभग 1.30 लाख टन था। भारत में मशरूम को खुम्भ, खुम्भी, भमोड़ी और गुच्छी के नामों से भी जाना जाता है और यह भोजन और औषधि दोनों रूपों में इस्तेमाल होता है।
मशरूम में प्रोटीन, काबोर्हाइड्रेट, खनिज और विटामिन की प्रचुरता होती है, जिससे इसका पोषण मूल्य काफी उच्च होता है। इसके अलावा मशरूम से पापड़, जिम सप्लीमेंट पाउडर, अचार, बिस्किट, टोस्ट, कुकीज, नूडल्स, जैम (अंजीर मशरूम), सॉस, सूप, खीर, ब्रेड, चिप्स, सेव, चकली जैसे उत्पाद भी बनाए जाते हैं जो आॅनलाइन उपलब्ध हैं।
मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों के लिए कृषि विश्वविद्यालयों और प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा पूरे वर्ष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें मशरूम की खेती की विधि, मशरूम बीज उत्पादन तकनीक, मास्टर ट्रेनर प्रशिक्षण, मशरूम उत्पादन और प्रसंस्करण के विषय शामिल होते हैं। इसके अलावा, महिलाओं को मशरूम की खेती के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है, और कई राज्यों में किसानों को मशरूम की खेती के लिए 50% लागत का अनुदान भी दिया जा रहा है।
विश्व में खाने योग्य मशरूम की लगभग 10,000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से केवल 70 प्रजातियाँ ही व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। भारत में पाँच मुख्य प्रकार के मशरूम की व्यावसायिक खेती की जाती है, जो भारतीय जलवायु के अनुसार अनुकूल माने जाते हैं।
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मशरूम की किस्में
मशरूम की हजारों प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ ही प्रजातियां खाद्य और व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। भारत में मुख्य रूप से निम्नलिखित मशरूम की किस्में उगाई जाती हैं:
सफेद बटन मशरूम: भारत में खेती और नई तकनीकें
भारत में सफेद बटन मशरूम की खेती पहले ठंडे क्षेत्रों तक ही सीमित थी, परंतु अब नई तकनीकों के उपयोग से इसकी खेती विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में भी की जा रही है। सफेद बटन मशरूम की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार भी इसके प्रचार-प्रसार में योगदान दे रही है, जिससे किसानों को तकनीकी सहायता और समर्थन मिल रहा है।
सफेद बटन मशरूम की लोकप्रिय किस्में
भारत में सफेद बटन मशरूम की खेती में मुख्य रूप से तीन उपभेदों का उपयोग किया जाता है:
एस-11
टीएम-79
होर्स्ट यू-3
ये उपभेद भारतीय जलवायु के लिए उपयुक्त हैं और गुणवत्ता के अनुसार अच्छी पैदावार देते हैं।
तापमान की आवश्यकताएं
- कवक जाल का फैलाव: मशरूम की फसल में कवक जाल (माइसेलियम) फैलने के लिए 22-26 डिग्री सेल्सियस का तापमान आवश्यक है, जिसमें यह जाल तेजी से फैलता है।
- फलन का विकास: एक बार कवक जाल फैलने के बाद 14-18 डिग्री सेल्सियस का तापमान सबसे उपयुक्त रहता है, जिससे मशरूम का विकास अच्छी तरह होता है।
खेती के अनुकूल स्थान
सफेद बटन मशरूम की खेती के लिए हवादार कमरे, शेड, हट, या झोपड़ी का उपयोग किया जा सकता है, जहां तापमान और नमी का प्रबंधन आसान हो। मशरूम की इस किस्म में तेजी से बढ़ने और अच्छी पैदावार की क्षमता है, जिससे यह भारत में व्यावसायिक खेती के लिए एक लाभकारी विकल्प बन गई है।
आॅयस्टर (ढ़ींगरी) मशरूम: खेती और उत्पादन विवरण
ढ़ींगरी मशरूम, जिसे आॅयस्टर मशरूम के नाम से भी जाना जाता है, पूरे वर्ष उगाया जा सकता है, जिससे यह भारतीय किसानों के लिए एक आकर्षक फसल है। इसके लिए आदर्श तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस और सापेक्षित आर्द्रता 70-90 प्रतिशत होनी चाहिए।
उगाने की सामग्री और विधि
ढ़ींगरी मशरूम की खेती के लिए गेहूं और धान के भूसे और दानों का उपयोग किया जाता है। इसे उगाने के लिए 100 वर्गफीट के कमरे में रैक लगाकर सामग्री का प्रबंधन किया जाता है। फसल का चक्र लगभग 2.5 से 3 महीने का होता है, जिसके बाद मशरूम तैयार हो जाता है।
खेती की लागत और संभावित लाभ
प्रति 10 टन उत्पादन की लागत: ढींगरी मशरूम की खेती के लिए प्रति 10 क्विंटल उत्पादन पर लगभग 50,000 रुपये का खर्च आता है।
बाजार मूल्य: बाजार में इसकी कीमत 120 रुपये प्रति किलोग्राम से लेकर 1000 रुपये प्रति किलोग्राम तक हो सकती है। यह दर उत्पाद की गुणवत्ता और मौसमी मांग पर निर्भर करती है।
विभिन्न प्रजातियों के लिए उपयुक्त तापमान
ढ़ींगरी मशरूम की विभिन्न प्रजातियों के लिए अलग-अलग तापमान आवश्यक होता है, जो इसे हर मौसम में उगाने के लिए अनुकूल बनाता है। इसकी उन्नत प्रजातियां विभिन्न जलवायु में भी अच्छे परिणाम देती हैं।
दूधिया मशरूम: भारत का ग्रीष्मकालीन मशरूम
दूधिया मशरूम को भारत में ग्रीष्मकालीन मशरूम के रूप में जाना जाता है। इसका आकार बड़ा और आकर्षक होता है, जो इसे देखने में भी विशेष बनाता है। पैडीस्ट्रा मशरूम की तरह, दूधिया मशरूम भी एक उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) मशरूम है, जो गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है। इसकी कृत्रिम खेती की शुरूआत 1976 में पश्चिम बंगाल में हुई थी, और आज यह कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है।
जलवायु और उपयुक्ता
मार्च से अक्तूबर तक इन राज्यों की जलवायु स्थिति दूधिया मशरूम की खेती के लिए आदर्श होती है। उड़ीसा सहित दक्षिण भारत के इन राज्यों की जलवायु परिस्थितियां इसके विकास के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं, जिससे इसकी खेती को प्रोत्साहन मिलता है।
व्यवसायीकरण और वर्तमान स्थिति
हालांकि, इन क्षेत्रों में पैडीस्ट्रा मशरूम को अधिक प्राथमिकता देने के कारण दूधिया मशरूम का व्यवसायिक स्तर पर व्यापक उत्पादन अभी तक पूरी तरह संभव नहीं हो पाया है। इसके बावजूद, इसे भारत में लोकप्रिय बनाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे कि पैडीस्ट्रा और शिटाके मशरूम के लिए किए गए थे।
पैडीस्ट्रा मशरूम (गर्म मशरूम):
पैडीस्ट्रा मशरूम को ‘गर्म मशरूम’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह अपेक्षाकृत उच्च तापमान पर तेजी से बढ़ने में सक्षम है। इसकी खेती के लिए आदर्श तापमान 28-35 डिग्री सेल्सियस होता है, और वृद्धि के लिए आवश्यक सापेक्ष आर्द्रता 60-70 प्रतिशत होती है। अनुकूल परिस्थितियों में इस मशरूम का फसल चक्र केवल 3-4 सप्ताह में पूरा हो जाता है, जिससे यह एक त्वरित उत्पादन वाला मशरूम है।
पोषक तत्व और गुण
पैडीस्ट्रा मशरूम में स्वाद, सुगंध, और नाजुकता के साथ-साथ उच्च मात्रा में प्रोटीन, विटामिन, और खनिज लवण भी होते हैं। ये गुण इसे पोषण की दृष्टि से एक उत्तम खाद्य स्रोत बनाते हैं। इसके सभी पोषक तत्वों का संतुलित संयोजन इसे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी और स्वादिष्ट बनाता है। यही कारण है कि यह मशरूम विभिन्न प्रदेशों में सफेद बटन मशरूम जितना ही लोकप्रिय है।
उत्पादन क्षेत्र
भारत में पैडीस्ट्रा मशरूम की खेती मुख्यत: उन क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ का तापमान और नमी इसके विकास के लिए उपयुक्त होते हैं। ये क्षेत्र उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड, और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य हैं, जहाँ इसकी कृषि सफलतापूर्वक होती है। इन राज्यों में उपलब्धता और इसकी पोषण गुणवत्ता के कारण, पैडीस्ट्रा मशरूम की स्थानीय बाजारों में अच्छी मांग है।
शिटाके मशरूम: एक विशेष खाद्य और औषधीय मशरूम
शिटाके मशरूम एक स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर मशरूम है, जो खाद्य और औषधीय गुणों के कारण महत्वपूर्ण माना जाता है। दुनिया में कुल मशरूम उत्पादन में इसका दूसरा स्थान है, और इसका स्वाद एवं बनावट इसे सफेद बटन मशरूम की तुलना में अधिक बेशकीमती बनाते हैं। शिटाके मशरूम का उपयोग व्यावसायिक और घरेलू स्तर पर आसानी से किया जा सकता है, जिससे इसकी खेती बढ़ती लोकप्रियता प्राप्त कर रही है।
पोषण और औषधीय गुण
प्रोटीन और विटामिन: शिटाके मशरूम में उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन और विशेष रूप से विटामिन बी का भरपूर स्रोत होता है, जो शरीर की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करता है।
वसा और शर्करा की अनुपस्थिति: इसमें वसा और शर्करा नहीं होती है, जिससे यह मधुमेह और हृदय रोगियों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प है। इसके सेवन से इन रोगियों को आवश्यक पोषण मिलता है, और उनका स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है।
उगाने की प्रक्रिया
शिटाके मशरूम को आसानी से कुछ खास प्रकार की ठोस भूसी पर उगाया जा सकता है, जिनमें सागवान, साल, और भारतीय किन्नू जैसे वृक्षों की भूसी प्रमुख हैं। यह प्रक्रिया घरेलू और व्यावसायिक स्तर पर कम लागत और प्रयास से की जा सकती है, जिससे इसकी खेती छोटे और बड़े दोनों किसानों के लिए उपयुक्त है।
मशरूम उत्पादन के लिए शेड/झोपड़ी/हट तैयार करना:
मशरूम की खेती की प्रक्रिया
मशरूम की खेती की प्रक्रिया कई चरणों में विभाजित है, जिसमें कम्पोस्ट बनाने से लेकर फसल की तुड़ाई और बिक्री तक शामिल है। आइए इन चरणों पर विस्तार से चर्चा करते हैं:
सफेद बटन मशरुम की खेती के लिए स्थाई व अस्थाई दोनों ही प्रकार के सेड का प्रयोग किया जा सकता है। जिन किसानों के पास धन की कमी है, वह बांस व धान की पुआल से बने अस्थाई सेड/झोपड़ी का प्रयोग कर सकते हैं। बांस व धान की पराली से 30 -22-12 (लम्बाई -चौड़ाई -ऊंचाई) फीट आकार के सेड/झोपड़ी बनाने का खर्च लगभग 30 हजार रुपए आता है, जिसमें मशरूम उगाने के लिए 4 .25 फीट आकार के 12 से 16 स्लैब तैयार की जा सकती हैं।
सफेद बटन मशरूम उत्पादन की प्रौद्योगिकी:
उत्तरी भारत में सफेद बटन मशरुम की मौसमी खेती करने के लिए अक्तूबर से मार्च तक का समय उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान मशरूम की दो फसलें ली जा सकती हैं। बटन मशरूम की खेती के लिए अनुकूल तापमान 15-22 डिग्री सेंटीग्रेट एवं सापेक्षित आद्रता 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए।
सफेद बटन मशरूम की खेती में उच्च गुणवत्ता वाला कम्पोस्ट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कम्पोस्ट तैयार करने की दो मुख्य विधियां प्रचलित हैं, जिनमें से एक लघु विधि और दूसरी दीर्घ विधि है।
कम्पोस्ट तैयार करने के तीन वैज्ञानिक फॉमूर्ले:
वैज्ञानिक विधि से कम्पोस्ट खाद तैयार करने के लिए निम्नलिखित तीन फॉमूर्ले विकसित किए गए हैं, जिनका अनुपालन कर उच्च गुणवत्ता का कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है।
पहला फॉर्मूला:
गेहूं का भूसा: 300 किग्रा,
गेहूं का चोकर: 30 किग्रा,
जिप्सम: 30 किग्रा,
किसान खाद (कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट): 9 किग्रा,
यूरिया: 3.6 किग्रा,
पोटाश: 3 किग्रा,
सिंगल सुपर फास्फेट: 3 किग्रा,
शीरा (राला): 5 किग्रा।
दूसरा फॉर्मूला:
गेहूं का भूसा: 300 किग्रा,
मुर्गी खाद: 60 किग्रा,
गेहूं का छानस: 7.5 किग्रा,
जिप्सम: 30 किग्रा,
किसान खाद (कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट): 6 किग्रा, यूरिया: 2 किग्रा,
पोटाश: 2.9 किग्रा,
सिंगल सुपर फास्फेट: 2.9 किग्रा,
शीरा: 5 किग्रा।
तीसरा फॉर्मूला:
सरसों का भूसा: 300 किग्रा,
मुर्गी खाद: 60 किग्रा,
गेहूं का छानस: 8 किग्रा,
जिप्सम: 20 किग्रा,
यूरिया: 4 किग्रा,
सुपर फास्फेट: 2 किग्रा,
शीरा: 5 किग्रा।
इन तीनों फॉमूर्लों में से किसी एक का चयन कर कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है।
1.लघु विधि (शॉर्ट-टर्म मेथड):
विशेषता: लघु विधि का उपयोग अक्सर बड़े फार्मों पर किया जाता है।
प्रक्रिया: इस विधि में कम्पोस्ट मिश्रण को करीब दस दिनों तक फर्श पर बाहर सड़ाया जाता है। इसके बाद इस मिश्रण को एक विशेष प्रकार के कमरे, जिसे निजीर्वीकरण चैम्बर या टनल कहते हैं, में डाल दिया जाता है।
निजीर्वीकरण चैम्बर का महत्व:
चैम्बर का फर्श जालीदार होता है, और इसमें ब्लोअर (पंखा) के जरिए हवा नीचे से ऊपर की ओर प्रवाहित की जाती है। इस प्रकार की हवा का लगातार संचार कम्पोस्ट में सूक्ष्मजीवों को सक्रिय रखता है और कम्पोस्ट की गुणवत्ता में वृद्धि करता है।
चैम्बर में लगभग 6-7 दिनों तक हवा चलाई जाती है। इससे कम्पोस्ट तेजी से तैयार होता है और इसकी उत्पादन क्षमता दीर्घ विधि से बने कम्पोस्ट की तुलना में लगभग दो गुनी होती है।
सीमाएं: हालांकि, अधिकतर किसानों के पास इस प्रकार के चैम्बर की सुविधा नहीं होती है। इस कारण वे दीर्घ विधि का उपयोग करते हैं।
- दीर्घ विधि (लॉन्ग-टर्म मेथड):
छोटे स्तर के किसान और जिनके पास चैम्बर की सुविधा नहीं होती, वे दीर्घ विधि से कम्पोस्ट तैयार करते हैं। यह विधि सस्ती और आसान है और इसे तीन चरणों में पूरा किया जाता है:
प्रारंभिक सामग्री की तैयारी
कम्पोस्ट तैयार करने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री में उच्च गुणवत्ता वाला नया भूसा होना चाहिए जो बारिश में भीगा न हो।
गेहूं का भूसा, धान की पराली, या सरसों का भूसा भी उपयोग किया जा सकता है।
यदि सरसों के भूसे का उपयोग हो रहा हो, तो उसके साथ मुर्गी खाद का प्रयोग करना आवश्यक है।
कम्पोस्ट की मात्रा बढ़ाने के लिए सभी सामग्रियों का अनुपात संतुलित रखें।
नाइट्रोजन संतुलन: कम्पोस्ट में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग 1.6-1.7% होनी चाहिए। यदि कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (किसान खाद) उपलब्ध न हो तो यूरिया का अनुपात बढ़ाया जा सकता है।
मशरूम कम्पोस्ट की तैयारी
मशरूम की खेती का सबसे महत्वपूर्ण चरण कम्पोस्ट तैयार करना है। कम्पोस्ट जैविक कचरे जैसे गेहूं या धान के भूसे से तैयार किया जाता है, जिसमें कुछ उर्वरक मिलाए जाते हैं। कम्पोस्ट की तैयारी निम्नलिखित चरणों में की जाती है:
कम्पोस्ट सड़ाने की दीर्घ विधि के लिए 28-दिन की पूरी प्रक्रिया नीचे सारणीबद्ध की गई है। हर चरण के विवरण के साथ दिनवार कार्य सूची दी गई है:
इस 28-दिन की प्रक्रिया का पालन करने से मशरूम उत्पादन के लिए एक समान, पौष्टिक, और गुणवत्ता-युक्त कम्पोस्ट तैयार होती है।
मशरूम की बीजाई (स्पॉनिंग):
मशरूम उत्पादन के लिए तैयार की गई सेड या झोपड़ी में स्लैब या बेड बनाए जाते हैं। इन बेडों पर सबसे पहले पॉलिथीन शीट बिछाई जाती है और उसके ऊपर 6-8 इंच मोटी कम्पोस्ट खाद की परत लगाई जाती है। इसके बाद कम्पोस्ट पर मशरूम का बीज या स्पॉन डाला जाता है।
स्पॉन की मात्रा: 100 किलोग्राम कम्पोस्ट के लिए 500-750 ग्राम स्पॉन पर्याप्त होता है।
स्पॉनिंग के बाद कवरिंग: स्पॉन डालने के बाद बेड को पॉलिथीन शीट से ढक देना चाहिए ताकि नमी और तापमान नियंत्रित रहे और स्पॉन को अच्छे से विकसित होने का वातावरण मिल सके।
बीज रखने में सावधानियां: मशरूम का बीज तापमान के प्रति संवेदनशील होता है:
उच्च तापमान: यदि तापमान 40त्उ से अधिक हो जाता है, तो बीज 48 घंटे के अंदर नष्ट हो सकता है और उसमें
बीज का परिवहन: गर्मी के मौसम में बीज को रात में ही लाना उचित रहता है। इसे थमोर्कोल के डिब्बों में बर्फ के साथ रखा जा सकता है, जिससे बीज सुरक्षित रहता है। वातानुकूलित वाहन का उपयोग बीज के सुरक्षित परिवहन के लिए सर्वोत्तम होता है।
बीज का भंडारण:
मशरूम का ताजा बीज कम्पोस्ट में तेजी से फैलता है, जिससे उपज जल्दी और अधिक होती है। यदि बीज का तत्काल उपयोग संभव न हो, तो इसे 15-20 दिनों के लिए रेफ्रिजरेटर में रखा जा सकता है ताकि उसकी गुणवत्ता बनी रहे।
केसिंग मिश्रण: केसिंग का उद्देश्य कम्पोस्ट की सतह पर नमी बनाए रखना है। इस प्रक्रिया में ऐसा मिश्रण उपयोग होता है, जो नमी को अवशोषित करके धीरे-धीरे छोड़ता है और भुरभुरा रहता है।
मिश्रण का अनुपात: चावल के छिलके की राख (बायलर की राख) और जोहड़ की मिट्टी को 1:1 के अनुपात में मिलाया जाता है।
निजीर्वीकरण: केसिंग मिश्रण को 2-3% फॉर्मलीन के घोल से तर किया जाता है और इसे पॉलिथीन शीट से ढककर 3-4 दिनों तक रखा जाता है। इसके बाद पॉलिथीन हटाकर मिश्रण को पलटते हैं ताकि फॉर्मलीन की गंध पूरी तरह निकल जाए। केसिंग परत: जब कम्पोस्ट में कवकजाल पूरी तरह फैल जाता है, तब 1.0-1.5 इंच मोटी केसिंग की परत डाली जाती है। इससे नमी बनी रहती है और मशरूम की अच्छी वृद्धि होती है। केसिंग न करने पर उपज कम होती है, जिससे आर्थिक नुकसान हो सकता है।
हवा का संचालन:कम्पोस्ट में कवकजाल फैलने के समय एक या दो बार ताजी हवा देना आवश्यक होता है।
कार्बनडाईआॅक्साइड की मात्रा नियंत्रित रखना महत्वपूर्ण है:
कवकजाल फैलते समय: उड की मात्रा 2% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
पिन हेड बनने और मशरूम निकलते समय: उड की मात्रा क्रमश: 0.08% और 0.08-0.1% होनी चाहिए।
महत्व: हवा का सही संचालन पिन बनने और मशरूम की अच्छी वृद्धि के लिए अनिवार्य है।फ्रूटिंग और तुड़ाई:केसिंग के बाद लगभग 12-15 दिनों में कम्पोस्ट खाद की सतह पर मशरूम की छोटी कलिकाएं (पिन हेड्स) दिखाई देने लगती हैं। 4-5 दिनों में ये विकसित होकर सफेद बटन मशरूम में बदल जाती हैं।
तुड़ाई का समय: जब सफेद बटन मशरूम का आकार 4-5 सेमी हो जाए, तो उन्हें हल्का घुमा कर तोड़ लेना चाहिए। उपयोग: तुड़ाई के बाद सफेद बटन मशरूम को जल्द ही उपयोग में लेना चाहिए क्योंकि यह जल्दी खराब हो जाता है।
उत्पादन क्षमता:
प्रयोग किए गए 10 किग्रा सूखे भूसे से बनी कम्पोस्ट खाद से लगभग 5 किग्रा सफेद बटन मशरूम प्राप्त हो सकते हैं। अच्छे कम्पोस्ट और उचित देखभाल से अच्छी गुणवत्ता के मशरूम की अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
यहां से ले सकते हैं स्पॉन :
खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश, डॉ यशवंत सिंह परमार बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन (हिमाचल प्रदेश), पादप रोग विज्ञान विभाग, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा), बागवानी निदेशालय, मशरूम स्पॉन प्रयोगशाला, कोहिमा, कृषि विभाग, मणिपुर, इम्फाल, सरकारी स्पॉन उत्पादन प्रयोगशाला, बागवानी परिसर, चाउनी कलां, होशियारपुर (पंजाब), विज्ञान समिति, उदयपुर (राजस्थान), क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला, सीएसआईआर, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर), कृषि विभाग, लालमंडी, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर), पादप रोग विज्ञान विभाग, जवाहर लाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (मध्य प्रदेश), पादप रोग विज्ञान विभाग, असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहट (असम), क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केन्द्र, धौलाकुआं (हिमाचल प्रदेश), हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय स्पॉन प्रयोगशाला, पालमपुर (हिमाचल प्रदेश), इन सरकारी स्पॉन उत्पादन केन्द्रों के अलावा बहुत से निजी व्यक्ति भी मशरूम बीज उत्पादन से जुड़े हैं जो सोलन, हिसार, सोनीपत, कुरूक्षेत्र (हरियाणा), दिल्ली, पटना (बिहार), मुम्बई (महाराष्ट्र) इत्यादि जगहों पर स्थित हैं। ल्ल
Reference:
https://www.gaonconnection.com/kheti-kisani/complete-information-on-mushroom-cultivation-when-and-how-to-cultivate-47892?infinitescroll=1
डॉ. अमर सिंह
पूर्व ए.सी.टी.ओ.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-12