Natural farming is a boon for the environment and farmers: Governor Acharya Devvrat

प्राकृतिक खेती पर्यावरण और किसानों के लिए वरदान: राज्यपाल आचार्य देवव्रत

नई दिल्ली। गुजरात के मेहसाणा जिले में भारतीय किसान संघ की ओर से जहरमुक्त खेती पर प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत मुख्य अतिथि के तौर शामिल हुए। राज्यपाल ने किसानों को और कृषि और व्यापार से संबंधित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि रासायनिक खेती के दुष्परिणामों से मुक्ति पाने का मजबूत विकल्प प्राकृतिक कृषि है। राज्यपाल ने अपने संबोधन में आगे कहा कि देसी गाय परमात्मा का वरदान है, पशुधन के बगैर प्राकृतिक कृषि संभव नहीं है। प्राकृतिक कृषि के लिए देसी नस्ल की गाय का महत्व सबसे ज्यादा है।

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प्राकृतिक कृषि एक मजबूत विकल्प

राज्यपाल ने प्राकृतिक कृषि पर बल देते हुए कहा कि जंगल में जिस तरह वृक्ष-वनस्पतियों का रासायनिक खाद और कीटनाशक के बगैर कुदरती तौर पर विकास और वृद्धि होती है, वैसे ही प्राकृतिक पद्धति से खेतों में उत्पादन प्राप्त करना ही प्राकृतिक कृषि है। प्राकृतिक खेती को पर्यावरण और किसानों के लिए आशीर्वाद बताते हुए कहा कि प्राकृतिक कृषि एक मजबूत विकल्प है। राज्यपाल ने कहा कि प्राकृतिक कृषि से जल-जमीन और पर्यावरण की रक्षा होती है।

प्राकृतिक खेती से बढ़ती है जमीन की उर्वरा शक्ति

राज्यपाल ने प्राकृतिक खेती और जैविक खेती के बीच का फर्क बताते हुए कहा कि यह दोनों पद्धतियां बिलकुल अलग हैं। जैविक खेती में कृषि खर्च घटता नहीं है और खरपतवार की समस्या का हल नहीं होता। वर्मी कम्पोस्ट के निर्माण का खर्च भी ज्यादा होता है। विदेशी केंचुए भारतीय वातावरण में पूरी क्षमता से काम ही नहीं कर पाते हैं। प्राकृतिक खेती में देशी गाय के गोबर-गौ मूत्र के मिश्रण से बनने वाले जीवामृत-घनजीवामृत से जमीन में सूक्ष्मजीवों और केंचुओं जैसे मित्रजीवों की वृद्धि होती है और जमीन की उर्वरकता बढ़ती है।

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