Scientists at Himachal Pradesh's University of Horticulture and Forestry, Nauni have identified a major mutation in an indigenous apple variety.

अब हिमाचल के बगीचों में फलेगा नया सेब

नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश के  बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के वैज्ञानिकों ने सेब की एक स्वदेशी किस्म में बड़े म्यूटेशन की पहचान की है। खास बात है कि सेब की इस किस्म की फसल सामान्य किस्मों से दो माह पहले तैयार हो जाएगी। इसका रंग भी सुर्ख लाल होगा। इस किस्म के सेब में रंग आने के लिए धूप की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी और यह कम धूप वाले क्षेत्रों में आसानी से तैयार हो सकेगा।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल  बताते हैं कि जल्दी तैयार होने और सुर्ख लाल रंग के चलते इस सेब की बाजार में भी अधिक मांग रहेगी। कुलपति ने आगे बताया  कि विवि के शिमला के मशोबरा स्थित क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र के सह निदेशक डॉ. दिनेश ठाकुर की अध्यक्षता में सेब की नई किस्में विकसित करने पर शोध चल रहा है।

इसी क्रम में डेलीशियस किस्मों में होने वाले कलिका उत्परिवर्तन (बड म्यूटेशन) पर शोध किया जा रहा है। इसके तहत प्राकृतिक परिवर्तन चयनित स्थायी अर्ली कलरिंग स्ट्रेन का विकास किया गया। इसे 1800 मीटर की ऊंचाई पर उगाई जाने वाली 35 साल की आयु वाले वांस डेलीशियस किस्म से विकसित किया गया।

वांस डेलीशियस किस्म की तुलना में अर्ली कलरिंग स्ट्रेन की खासियत है कि इसमें फल दो महीने पहले ही पूर्ण रूप से गहरे लाल रंग में विकसित हो जाता है। जबकि इसकी मदर किस्म वांस डेलीशियस की सतह पर धारीदार रंग उभरता है। अर्ली कलरिंग स्ट्रेन में जल्द ही फूल और फल आने लगता है।