मटर की खेती को रखें रोग मुक्त,नहीं तो घटेगी पैदावार
झाँसी: मटर सर्दियों के मौसम में हर जगह बिकते हुए नज़र आ जाता है। यह एक प्रमुख सब्ज़ी और लोगों के बीच में बहुत लोकप्रिय भी है, मटर की खेती किसान बहुत बड़े पैमाने पर करते हैं ताकि उन्हें उचित मूल्य और आर्थिक लाभ हो । हालांकि, मटर की खेती को कई जैविक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें जड़ सड़न और विल्ट रोग प्रमुख हैं। यह समस्या मिट्टी में मौजूद रोगजनकों, विशेषकर फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ.एस.पी. पिसी और राइजोक्टोनिया सोलानी, के कारण होती है।
मटर के फसल में कई रोग आम है जिसे सही समय पर उचित देख भाल करके यदि दूर नहीं किया गया तो किसानों को उचित प्रोडक्शन नहीं मिल पायेगा । कई रोगों के लक्षण मटर में आम हैं जैसे, निचली पत्तियों का पीलापन होना , तने में भूरापन, यह दोनों लक्षण इस बात की अलामत है कि पौधे धीरे-धीरे मुरझा कर सुख जायेंगे। जड़ों पर लाल-भूरे धब्बे और जड़ों के लगातार सड़ने से यह पता चलता है कि पौधों की वृद्धि बहुत कमज़ोर है जिस कारण प्रोडक्शन में कमी आ जाती है।
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रोग के फैलाव में मिट्टी की खराबी का होना, जल निकासी में कमी , अत्यधिक नमी के कारण मटर की पैदावार पर बुरा असर पड़ता है । फसल चक्रण की कमी और संक्रमित पौधों के अवशेष भी समस्या को बढ़ाते हैं।इसका बचाव करना बहुत ज़रूरी है ताकि फसल खराब नहीं हो और किसानों को उनकी मेहनत का सही मुआवज़ा मिल सके।
मटर के बचाव के कुछ तऱीके: मटर की एकल खेती से बचें। अन्य फसलों, जैसे गेहूं और जौ, के साथ फसल चक्रण करें।गर्मियों में खेत को पारदर्शी पॉलीथीन शीट से ढकने से मिट्टी के रोगाणु मर जाते हैं। खेत में पानी भरने से बचें। संक्रमित पौधों के मलबे को हटाएं और नष्ट करें। इन उपायों को अपनाकर किसान न केवल अपनी फसल को रोगों से बचा सकते हैं, बल्कि अपनी उपज और आय को भी बढ़ा सकते हैं।