प्रदूषण के कारण फलों और सब्जियों की गुणवत्ता में गिरावट

नई दिल्ली: शीत ऋतु (जाड़ा) का मौसम उत्तर भारत में कृषि के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन प्रदूषण के बढ़ने के कारण फसलों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। तापमान में गिरावट और बहुत अधिक  प्रदूषण से फलों और सब्जियों की गुणवत्ता और उत्पादकता में कमी आ रही है। तेज़ी से बढ़ता प्रदूषण पौधों की वृद्धि और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बाधित करता है। धुंध और स्मॉग के कारण सूर्य का प्रकाश जमीन तक ठीक ढंग से नहीं पहुंच पाता, जिससे पौधे अपना भोजन नहीं बना पाते, जिस कारण प्रोडक्शन में कमी आने लगती है ।

वायुमंडल में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) और ओज़ोन (O₃) जैसी गैसें पत्तियों की सतह को नुकसान पहुंचाती हैं। इससे पौधों में क्लोरोफिल की कमी, पत्तियों का मुरझाना और समय से पहले गिरना जैसी समस्याएं होती हैं।

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प्रदूषण के कारण फल और सब्जियों के स्वाद में बदलाव, रंग और आकार में अंतर, और बाजार में मांग में कमी देखी जाती है। ठंडी हवाओं और नमी के कारण फफूंद और बैक्टीरिया जनित रोग, जैसे आलू और टमाटर में लेट ब्लाइट और गोभी में डाउनी मिल्ड्यू, अधिक तेजी से फैलते हैं। भारी धातुओं जैसे लेड और कैडमियम के कारण पौधे जैविक तनाव झेलते हैं, जिससे उनकी उपज कम हो जाती है। मिट्टी में प्रदूषकों के कारण उसका pH स्तर बदल जाता है और पौधे पोषक तत्व अवशोषित नहीं कर पाते।

प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किसानों को पराली जलाने से बचने की सलाह दी जा रही है। पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता खत्म हो जाती है। एक बार मिट्टी बंजर हो जाने के बाद उसमें खाद डालने का भी सही असर नहीं होता।