नोएडा-ग्रेटर नोएडा में प्रदूषण की स्थिति जस की तस, सुधार नाकाम

नोएडा: देश में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर तमाम योजनाएं बनाई जा रही हैं, लेकिन ग्रेटर नोएडा और नोएडा में हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे। स्विस संस्था आइक्यू एयर की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, नोएडा दुनिया का 13वां और ग्रेटर नोएडा 18वां सबसे प्रदूषित शहर बना रहा। भारत में भी ग्रेटर नोएडा सातवें और नोएडा 13वें स्थान पर रहा।

शहर में बढ़ते प्रदूषण के पीछे कई कारण हैं, उड़ती धूल, भारी ट्रैफिक, निर्माण कार्यों में लापरवाही और प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों का संचालन मुख्य वजहें मानी जा रही हैं। नियमों के बावजूद, सड़कों पर धूल उड़ती रहती है, निर्माण स्थलों पर हरे कपड़े से ढंकने की अनदेखी की जाती है, और पानी का छिड़काव न के बराबर होता है।

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नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत नोएडा को प्रदूषण कम करने के लिए 30 करोड़ रुपये का बजट मिला, लेकिन अब तक सिर्फ 5 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

शहर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत पाबंदियां लगाई जाती हैं, लेकिन इसका जमीनी असर नहीं दिखता। पाबंदियों के दौरान हल्की निगरानी होती है, लेकिन जैसे ही पाबंदियां हटती हैं, हालात फिर पहले जैसे हो जाते हैं। डस्ट-फ्री जोन केवल कागजों तक सीमित हैं, जबकि सड़कों पर धूल उड़ती रहती है।

अगर नोएडा-ग्रेटर नोएडा को प्रदूषण मुक्त बनाना है तो कड़े नियम लागू करने होंगे। निर्माण स्थलों की सख्त निगरानी, सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाना, ट्रैफिक कंट्रोल, और प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कार्रवाई जैसे उपाय जरूरी हैं। अन्यथा, यह समस्या हर साल और गंभीर होती जाएगी