बेर की खेती में पाउडरी मिल्ड्यू रोग का खतरा
लखनऊ: बेर एक ऐसा फल है, जो न केवल पोषण से भरपूर है, बल्कि इसके कई उपयोग हैं। इसके फल ऊर्जा और पोषक तत्वों का अच्छा स्रोत हैं, जबकि पत्तियों का उपयोग पशु चारे के रूप में किया जाता है। बेर की लकड़ी ईंधन, बाड़, और फर्नीचर निर्माण में भी काम आती है।
बेर की खेती में पाउडरी मिल्ड्यू नामक रोग एक बड़ी समस्या है। यह रोग पौधों की पत्तियों, फूलों, और फलों को प्रभावित करता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में गिरावट आती है। सफेद पाउडर जैसा पदार्थ नई पत्तियों पर दिखता है, जिससे वे सिकुड़ने लगती हैं और जल्दी गिर जाती हैं। फलों की सतह पर सफेद परत बनती है, जो बाद में भूरी हो जाती है। ऐसे फल अक्सर बाजार में बेचे नहीं जा सकते। सर्दियों में फफूंदी सुप्त अवस्था में रहती है और वसंत में अनुकूल मौसम में सक्रिय हो जाती है।
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बेर के बचाव के तरीके: रोगग्रस्त हिस्सों को हटा दें। ओवरहेड सिंचाई से बचें ताकि अधिक आर्द्रता न हो। फूल और फल लगने के बाद केराथेन (1 मिली प्रति लीटर पानी) या घुलनशील गंधक (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।
पाउडरी मिल्ड्यू रोग का सही समय पर प्रबंधन करके किसान न केवल अपने फलों की गुणवत्ता सुधार सकते हैं, बल्कि उत्पादन भी बढ़ा सकते हैं। जैविक और रासायनिक दोनों उपायों का सही उपयोग इस रोग से लड़ने में मददगार साबित हो सकता है।