सेमल: औषधीय गुणों से भरपूर प्रकृति का वरदान

मल को संस्कृत में ‘शिम्बल’ और ‘शाल्मलि’ कहा जाता है। यह एक बहुत बड़ा पेड़ होता है, जो पत्ते झाड़ने वाला (पर्णपाती) है। इस पेड़ में बड़े और मोटे लाल रंग के फूल लगते हैं। इसके फलों (डोडों) में सिर्फ रूई होती है, कोई गूदा नहीं होता। सेमल का पेड़, जिसे साइलेंट डॉक्टर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यह पेड़ अपने फूलों, फलों, पत्तियों, छाल और जड़ों में अनेक औषधीय गुण समेटे हुए है।

खासतौर पर महिलाओं के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है। इसके पत्ते रक्तशोधन का बेहतरीन स्रोत होते हैं, जबकि इसकी जड़ें ल्यूकोरिया जैसी समस्याओं के उपचार में कारगर मानी जाती हैं। इसकी छाल, पत्तियां और बीज का उपयोग बुखार, दस्त और त्वचा रोगों के उपचार में किया जाता है। पारंपरिक चिकित्सा में इसका उपयोग घावों को भरने और संक्रमण रोकने के लिए किया जाता है।

देहरादून के वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. एसके जैन बताते हैं कि आयुर्वेद में सेमल का बहुत महत्व है। इसकी छाल, पत्तियां, फूल, फल और जड़ विभिन्न बीमारियों के उपचार में उपयोगी माने जाते हैं।
पेचिश, कब्ज, गिल्टी, ट्यूमर, खांसी, कमर दर्द और महिलाओं में दूध बढ़ाने के लिए यह रामबाण औषधि साबित हो सकता है। यही वजह है कि पारंपरिक चिकित्सा में इसे सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है।

सेमल का उपयोग गहरे जख्म भरने में मददगार
सेमल की छाल को पीसकर लेप लगाने से शरीर पर बने गहरे घाव जल्दी भरने लगते हैं। इसकी सूजन-रोधी विशेषता घाव को जल्द ठीक करने में सहायक होती है। दस्त और अतिसार में राहत : सेमल की पत्तियों के डंठल का काढ़ा बनाकर दो चम्मच पीने से अतिसार और दस्त में आराम मिलता है। यह पाचन तंत्र को मजबूत करने में भी मदद करता है।
मुंहासों और त्वचा रोगों का उपचार: सेमल की छाल या पत्तियों को पीसकर कील-मुंहासों पर लगाने से वे जल्दी ठीक हो जाते हैं। साथ ही, फोड़े-फुंसी और चिकनपॉक्स जैसी त्वचा समस्याओं में भी यह कारगर साबित होता है।

ल्यूकोरिया में लाभकारी: महिलाओं में सफेद पानी (ल्यूकोरिया) की समस्या आम होती है। सेमल के ताजे फल को देसी घी और सेंधा नमक के साथ सब्जी बनाकर खाने से इस समस्या में राहत मिलती है।
डायरिया से छुटकारा: डायरिया या पेचिश की समस्या से राहत पाने के लिए सेमल के फूलों के ऊपरी छिलकों को रातभर पानी में भिगोकर सुबह मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। इससे पाचन तंत्र मजबूत होता है।
कब्ज दूर करने में सहायक: कब्ज की समस्या से पीड़ित लोग सेमल के फूलों की सब्जी का सेवन कर सकते हैं। इससे आंतों की सफाई होती है और पाचन तंत्र बेहतर बनता है।
कमर दर्द में फायदेमंद: आजकल कमर दर्द की शिकायत आम हो गई है। सेमल के फूलों की सब्जी या लड्डू बनाकर खाने से कमर दर्द में राहत मिलती है। यह शरीर को मजबूत और ताकतवर बनाने में मदद करता है।

रक्त शुद्ध करने में कारगर: सेमल के पत्ते और फूल खून की सफाई में मदद करते हैं। इससे शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं और ब्लड प्यूरीफिकेशन बेहतर होता है।
पुरुषों की प्रजनन क्षमता बढ़ाए: सेमल के फूल न केवल महिलाओं के लिए, बल्कि पुरुषों के लिए भी बहुत फायदेमंद हैं। इससे मदार्ना ताकत बढ़ती है और स्पर्म काउंट बेहतर होता है। इसके फूलों के लड्डू ड्राई फ्रूट्स के साथ बनाकर खाने से शरीर को ताकत मिलती है।
सेमल का रोपण: वैसे तो सेमल के पेड़ स्वत: जंगलों में उग जाते हैं, लेकिन इसे नदियों के किनारे अधिक पाया जाता है। यह मुख्य रूप से गर्म तापमान वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है। अप्रैल में इस पर लाल रंग के खूबसूरत फूल खिलते हैं। इसके फल केले के आकार के होते हैं, जिनमें कपास जैसा रेशा पाया जाता है।

कैसे लगाएं सेमल का पौधा?
लगभग दो फीट गहरा गड्ढा खोदें। उसमें गोबर की खाद और मिट्टी मिलाकर भरें। पौधा लगाने के बाद हल्का पानी का छिड़काव करें। शुरूआती दो हफ्ते तक नियमित सिंचाई करें। सेमल का पेड़ तेजी से बढ़ता है और इसका जीवनकाल लंबा होता है।

रेशम कपास: एक अनोखा पेड़: पेड़ की विशेषताएँ: काँटेदार तना और डालियाँ, इस पेड़ के तना और डालियों पर दूर-दूर तक काँटे होते हैं। इसकी पत्तियाँ लंबी और नुकीली होती हैं। हर डंठल में 5-6 पत्ते पंजे के आकार में जुड़े होते हैं। इसके फूल गहरे लाल रंग के और बड़े आकार के होते हैं। जब फाल्गुन (फरवरी-मार्च) में पेड़ की सारी पत्तियाँ झड़ जाती हैं, तब यह लाल फूलों से पूरा ढका हुआ नजर आता है। फूलों के झड़ने के बाद डोडे (फल) रह जाते हैं। इन डोडों में बहुत मुलायम और चमकीली रूई होती है, जिसके अंदर बीज छिपे होते हैं।

तकिए और गद्दों में बनाने में सेमल के रूई का प्रयोग किया जाता है जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। सेमल की लकड़ी पानी में लंबे समय तक टिकती है। इसलिए इसका उपयोग नाव बनाने में किया जाता है। सेमल को रेशम कपास (र्र’‘ उङ्म३३ङ्मल्ल ळ१ीी) भी कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम बॉम्बेक्स सीइबा (इङ्मेुं७ उी्रुं) है। इसे लाल रेशम कपास, मालाबार रेशम कपास या कपोक (ङंस्रङ्म‘) के नाम से भी जाना जाता है। सजावटी महत्व: सेमल के पेड़ को अक्सर पार्कों और बगीचों में लगाया जाता है। इसके लाल रंग के आकर्षक फूल इसे देखने लायक बनाते हैं। यह पेड़ नदियों और नालों के किनारे पनपता है। यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटि बंधीय जलवायु के लिए अनुकूलित होता है।

मृदा अनुकूलता: सेमल को अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है। बहुत अधिक पानी ठहरने वाले स्थानों पर इसे लगाने से बचना चाहिए।

सेमल: एक रोजगार का जरिया: उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में सेमल आय का अच्छा स्रोत बन रहा है। ग्रामीण इस पेड़ से एक सीजन में 30,000 से 40,000 रुपये तक कमा लेते हैं। सेमल की सब्जी और अचार बाजार में आसानी से बिक जाता है। आयुर्वेदिक कंपनियां इसके फूलों और छाल को दवा बनाने के लिए खरीदती हैं। इसके रेशों का उपयोग तकिए और गद्दे भरने में किया जाता है। सेमल का पेड़ सिर्फ एक सजावटी पौधा नहीं है, बल्कि औषधीय और आर्थिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। यह स्वास्थ्य, पर्यावरण और रोजगार तीनों के लिए फायदेमंद है। महिलाओं से लेकर पुरुषों तक, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी के लिए यह किसी न किसी रूप में उपयोगी है। इसलिए, यदि आपके पास जगह हो, तो एक सेमल का पौधा जरूर लगाएं और इसके औषधीय गुणों का लाभ उठाएं!