आ गया जेट्रोफा लगाने का समय, इसके बीजों से बनता है बायो-डीजल

अगर आप जेट्रोफा की खेती करना चाहते हैं तो कलम द्वारा तैयार इसके पौधों के रोपण का सबसे अच्छा समय यही है। इसे जुलाई से सितंबर तक लगाते हैं। आप फटाफट इसकी तैयारी शुरू कर दें। इसके संबंध में समस्त जानकारी यहां हम आपको दे रहे हैं।

नर्सरी टुडे डेस्क
नई दिल्ली। अगर आप पर्यावरण प्रेमी किसान हैं और अपनी आय बढ़ाने के लिए कुछ अलग करना चाहते हैं तो जेट्रोफा की खेती का विकल्प चुन सकते हैं। दरअसल, जेट्रोफा (Jatropha) एक ऐसा पौधा है, जिसके बीजों से बायो-डीजल बनाया जा सकता है। इसकी इसी खासियत के कारण इसे ‘डीजल के पौधे’ के नाम से भी जाना जाता है। अगर आप इसकी खेती करते हैं तो निःसंदेह इससे काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। आज जब डीजल के भाव आसमान छू रहे हैं, तो ऐसे में इसकी खेती आपकी किस्मत खोल सकती है। आइये, इस खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं…

सामान्य नाम
जंगली अरंड, व्याध्र अरंड, रतनजोत, चन्द्रजोत एवं जमालगोटा आदि।

वानस्पतिक नाम
जेट्रोफा करकस (Jatropha Curcas)

जलवायु एवं मिट्टी
यह समशीतोष्ण, गर्म रेतीले, पथरीले तथा बंजर भूमि में होता है। दोमट भूमि में इसकी खेती अच्छी होती है। जल जमाव वाले क्षेत्र उपयुक्त नहीं हैं।

बीज दर
5 किलो प्रति हेक्टेयर

बीजोपचार
जड़ सड़न तथा तना बिगलन के रोकथाम हेतु बीज उपचार 2 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के अनुसार थाइरेम, बेबिस्टीन तथा वाइटावेक्स के (1:1:1) मिश्रण को बीज में मिलाकर बोयें।

बोआई एवं रोपण
बीज अथवा कलम द्वारा इसके पौधे तैयार किए जाते हैं। मार्च-अप्रैल माह में नर्सरी लगाई जाती है तथा रोपण का कार्य जुलाई से सितंबर तक किया जा सकता है। बीज द्वारा सीधे गड्डों में बुवाई की जाती है।

पौधे से पौधे की दूरी
असिंचित क्षेत्रों में 2×2 मीटर और सिंचित क्षेत्रों में 3×3 मीटर की दूरी रखी जाती है। गड्ढे का आकार 45×45 x45 (लम्बाई x चौडाई x गहराई) सेमी होता है। जेट्रोफा के पौधों को बाड़ के रूप में लगाने पर दूरी 0.50 x 0.50 मी (दो लाइन) रखी जाती है।

पौधशाला
(1) समतल क्यारीः 15 x15 सेमी दूरी पर बीज बोयें। बोने के पूर्व बीज को 12 घंटों तक भिगोयें। तीन माह बाद स्वस्थ पौधों को रोपें।
(2) पॉली बैगः बालू मिट्टी तथा कम्पोस्ट खाद (1:1:1) के मिश्रण को पॉली बैग (16″x12″) में भरें। 2-3 बीज बोयें, सिंचाई करें तथा स्वस्थ पौधों की 3 माह बाद रोपाई करें।

रोपण की विधि
गड्डे में रेत, मिट्टी तथा कम्पोस्ट की खाद का मिश्रण 1:1:1 के अनुपात में भरें। नर्सरी में तैयार पौधों की रोपाई जुलाई या अगस्त माह से शुरू कर दें। कलम द्वारा तैयार करने हेतु लम्बाई 30-50 सेंटी मीटर व्यास, स्वस्थ, सुडौल चमकदार कई आँखों वाली निचली टहनियाँ चुनें।

उन्नत किस्में
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में देश के विभिन्न भागों से निम्न 12 किस्मों का परीक्षण चल रहा है। इसमें GIE–नागपुर, PKVJ-DHW, PKVJ–MKV, TFRI-1, TFRI-2, RJ-117, पंत जी–सेल 1, पंत जी–सेल 2, कल्याणपुर, मानकेश्वर, चाण्डक, बामुण्डा, RJ-117, GIE-नागपुर बरमुण्डा अच्छी पाई गई। सरदार कृषि विश्वविद्यालय, बनासकान्ठा से विकसित SDAUJI किस्म भी अच्छी है।

खाद एवं उर्वरक
रोपण से पूर्व गड्ढे में मिट्टी (4 किलो), कम्पोस्ट की खाद (3 किलो) तथा रेत (3 किलो) के अनुपात का मिश्रण भरकर 20 ग्राम यूरिया 120 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 15 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश डालकर मिला दें। दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरो पायरिफॉस पाउडर (50 ग्राम ) प्रति गड्डा में डालें, तत्पश्चात पौधरोपण करें।

सिंचाई एवं गुड़ाई
शुष्क मौसम (मार्च से मई) में दो सिंचाई उत्तम रहती है। प्रत्येक तीन माह के अन्तराल पर खाद का प्रयोग तथा गुड़ाई करें।

कटाई-छंटाई
पौधों को गोल छाते का आकार देने के लिए दो वर्ष तक कटाई- छंटाई आवश्यक है। प्रथम कटाई में रोपण के 7-8 महीने पश्चात पौधों को भूमि से 30-45 सेमी छोड़कर शेष ऊपरी हिस्सा काट देना चाहिए। दूसरी छंटाई पुनः 12 महीने बाद सभी टहनियों में 1/3 भाग छोड़कर शेष हिस्सा काट देना चाहिए। प्रत्येक छंटाई के पश्चात 1 ग्राम बेविस्टीन 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अप्रैल और मई महीनों में छंटाई का कार्य करते हैं।

उपज
बरसात के समय में पौधे में फूल आना प्रारंभ हो जाता है तथा दिसंबर-जनवरी माह में हरे रंग के फल काले पड़ने लगते हैं। जब फल का ऊपरी भाग काला पड़ने लगे तब तोड़ा जा सकता है।
प्रथम वर्षः कोई बीज उत्पाद नहीं
द्वितीय वर्षः कोई बीज उत्पाद नहीं
तृतीय वर्षः 500 ग्राम/ पेड़ (12.5 क्विंटल/हेक्टेयर)
चतुर्थ वर्षः 1 किलो ग्राम/ पेड़ (25 क्विंटल/हेक्टेयर)
पंचम वर्षः 2 किलो ग्राम/ पेड़ (50 क्विंटल/हेक्टेयर)
छठे वर्षः 4 किलो ग्राम/ पेड़ (100 क्विंटल/हेक्टेयर) एवं आगे।

स्रोत: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय