पेड़ों के बिना पृथ्वी पर कोई भविष्य नहीं : ‘ग्रीनमैन’ विजयपाल
श्री राम शॉ
‘ग्रीनमैन’ के रूप में पहचान बनाने वाले पर्यावरण प्रहरी विजयपाल बघेल विगत चार दशकों से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। वह वृक्ष को प्रकृति का आधार मानते हुए मिशन सवा सौ करोड़ के तहत प्रत्येक व्यक्ति से एक पौधा लगाने की अपील कर रहे हैं। वह स्कूली बच्चों को पौधा लगाने के लिए खास तौर पर प्रेरित करते हैं। वर्ष 1993 में ‘पर्यावरण वाहिनी’ के सदस्य रहते हुए उन्होंने साल 1996 में ‘मेरा वृक्ष’ योजना का सफलतापूर्वक संचालन किया। वर्ष 1998 में ‘झपटो आंदोलन’ पॉलिथीन उन्मूलन अभियान की शुरूआत करके वर्ष 2001 में ‘आॅपरेशन ग्रीन’ अभियान का नेतृत्व किया। वर्ष 2004 से ‘ग्लोबल ग्रीन मिशन’ शुरू किया जो अनवरत जारी है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई अवार्ड मिल चुके हैं। हरित ऋषि, जेपी अवार्ड, ग्रीन मैन और हिमालय प्रदूषण जैसे अनेक पुरस्कार उनके नाम दर्ज हैं। पेड़-पौधों के प्रति अपने लगाव के लिए वह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं। उनके नाम पर केंद्र सरकार डाक टिकट भी जारी कर चुकी है।
छोटा कद और बदन पर हरे कपड़े, यहां तक कि पेन भी हरा – यह हुलिया है बघेल का। पर्यावरण के प्रति उनके इस अनूठे प्रेम ने उन्हें ‘हरित ऋषि’ बना दिया। वे पौधे रोपित करने पर तो बल दे ही रहे हैं, लेकिन उससे अधिक जोर पेड़ों के कटान को रोकने का है। लंबे समय से वह पर्यावरण संरक्षण की मुहिम छेड़े हुए हैं। यह इंसान 40 से भी अधिक साल से रोजाना कम से कम एक पेड़ जरूर लगा रहा है। इसके अलावा बघेल करीब 10 लाख पेड़ों को कटने से भी बचा चुके हैं, तभी तो लोग उन्हें ‘ग्रीन मैन’ कहकर पुकारते हैं।
‘मेरा वृक्ष’ योजना के बाद आॅपरेशन ग्रीन, ग्लोबल ग्रीन मिशन, मेरा पेड़ मेरी शान, मिशन सवा सौ करोड़, पेड़ लगाएं सेल्फी भेजे सरीखे कई कार्यक्रम उन्होंने चलाये। इसके अलावा वह ‘ग्लोबल ग्रीन पीस’ नाम का एक खास मिशन चला रहे हंै, जिसके तहत के देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग पौधारोपण और उनके संरक्षण के लिए कार्यरत हैं। हरियाली बचाने की इस यात्रा में विजय पाल की ‘गुल्लक स्कीम’ बहुत लोकप्रिय है। इसके तहत वह लोगों को फलों के बीजों को संरक्षित करने के लिए प्रेरित करते हैं।
श्री राम शॉ के साथ उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश :
प्रकृति की रक्षा के लिए आपके अंदर यह जुनून किस कारण से जागृत हुआ?
जब मैं 5 साल का था तो मेरे दादाजी मुझे एक रिश्तेदार के यहाँ ले गये। रास्ते में मैंने लकड़हारों के एक समूह को एक पेड़ काटते देखा। जहां पेड़ पर प्रहार किया जा रहा था वहां से पानी जैसा तरल पदार्थ निकल रहा था। मुझे याद है, मैं सोच रहा था कि पेड़ रो रहा है। मैंने अपने दादाजी से पूछा कि क्या पेड़ रोते हैं, लेकिन वह मेरे सवाल का जवाब नहीं दे सके। मैं लकड़हारों को रोकने के लिए बहुत छोटा था, इसलिए मैंने अपने दादाजी को उन लोगों को भगाने के लिए मजबूर किया। यह एक छोटी सी सफलता थी, लेकिन इसने इसकी नींव रखी कि मैं आज कौन हूं। तभी मैंने तय कर लिया कि मुझे पेड़ों को बचाना है। मैं तभी से पर्यावरण के बारे में जानने की कोशिश कर रहा हूं और जहां तक हो सके इस बात को फैला रहा हूं।
क्या आप पर्यावरण वैज्ञानिक हैं?
नहीं, मैं पेशे से एक मानवाधिकार वकील हूं। मैंने 1993 में प्रैक्टिस छोड़ दी और अपना जीवन प्रकृति के संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया।
आपके लक्ष्य क्या हैं?
मेरे कई लक्ष्य और उद्देश्य हैं। उनमें से एक है पॉलिथीन और प्लास्टिक के उपयोग को पूरी तरह से खत्म करना और भारत को पॉलिथीन मुक्त देश बनाना। यह दुनिया भर में पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण है। यह एक गैर-बायोडिग्रेडेबल उत्पाद है और पारिस्थितिकी तंत्र में मौजूद रहता है। लेकिन मेरा लक्ष्य यहीं खत्म नहीं होता। मैं उन सभी गतिविधियों के खिलाफ हूं जो प्रकृति के लिए हानिकारक हैं। मेरी उम्र में करने के लिए बहुत कुछ है और समय बहुत कम है। इसलिए मैं यथासंभव छोटे-छोटे कदम उठाता रहता हूं।
आपको ग्रीनमैन उपनाम किसने दिया?
मुझे राजनेता और पर्यावरणविद् अल गोर जूनियर, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के 45वें उपराष्ट्रपति के रूप में कार्यरत थे, द्वारा ‘ग्रीनमैन बघेल’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। मैं दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकार का हरित राजदूत भी हूं। मेरी संस्था पर्यावरण सचेतक समिति पूरे भाारत में पर्यावरण-अनुकूल उद्यमों से जुड़ी हुई है।
ग्रीनमैन वास्तव में क्या करता है?
मेरी भूमिका भागीदारी सुनिश्चित करना है। मैं जिस भी नए व्यक्ति तक पहुंचने या उसे प्रेरित करने में सक्षम हूं, वह समाज द्वारा प्रकृति को देखने के तरीके में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। मैं चाहता हूं कि अधिक से अधिक लोग प्रकृति की उपेक्षा की समस्याओं से अवगत हों और चीजों को बेहतर बनाने के लिए हम सहज हों। मेरे संगठन ने ‘आॅपरेशन ग्रीन’ जैसे हरित अभियान में भाग लिया है, जो मूल रूप से पौधे लगाने की एक पहल है, और सूरजपुर आर्द्रभूमि का नवीनीकरण है। हमने सिटी फॉरेस्ट विकसित करने के लिए जीडीए के साथ और बायो-मेडिकल कचरे के निपटान की प्रक्रिया तय करने के लिए नोएडा प्राधिकरण के साथ भी काम किया है।
क्या आपको इस काम में किसी की मदद मिली?
हम आम तौर पर मदद नहीं मांगते हैं, लेकिन हमें सरकार और कई गैर सरकारी संगठनों से हमेशा समर्थन मिलता है। हमारा एनजीओ एक स्वैच्छिक संगठन है और स्वैच्छिक भागीदारी पर निर्भर रहता है। हमारे पास भारत समेत दुनिया भर से 64,000 से अधिक स्वयंसेवक हैं।
आपके अनुसार, आज पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा खतरा क्या है?
मानव… हम पहले से कहीं ज्यादा लालची हो गये हैं। हम स्वार्थी हो गए हैं। हम उस ग्रह के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचते जिसे हम आने वाली पीढ़ियों के लिए छोड़कर जा रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और पर्यावरण को हो रही क्षति का खामियाजा हमें भुगतना पड़ सकता है।
इसका आखिर समाधान क्या है?
हमें समस्या को समझने की जरूरत है, और हममें से प्रत्येक को अपना योगदान देने की जरूरत है। पर्यावरण संबंधी मुद्दे रातोरात नहीं उभरे। हम अपनी आदतों में छोटे-छोटे, क्रमिक परिवर्तनों के माध्यम से ही बदलाव ला सकते हैं। हमें अपने कार्बन पदचिह्न को कम करने के तरीकों की तलाश करनी होगी। जब तक हमारे, विशेषकर हमारे बच्चों के मन में बदलाव के बीज नहीं बोए जाएंगे तब तक कुछ भी नहीं बदलने वाला है।
क्या आपको लगता है कि तकनीकी प्रगति प्रकृति पर प्रभाव को कम कर सकती है?
प्रौद्योगिकी किसी विलुप्त प्रजाति को वापस नहीं ला सकती, क्या ऐसा हो सकता है? यह केवल निवारक कार्रवाई सुनिश्चित कर सकता है। हम प्रकृति के मूलभूत तत्वों, जैसे जल, वायु, पवन और पृथ्वी का उत्पादन नहीं कर सकते। उत्तर, मेरी अपनी व्याख्या में, हरियाली है – हरि (हरियाली) और अली (संस्कृति) का एक संयोजन।
‘ग्रीन वॉल आॅफ इंडिया’ के आपके प्रस्ताव को केंद्र ने गंभीरता से लिया था…
पराली जलाने से प्रदूषण में केवल आठ प्रतिशत का योगदान होता है, वहीं दिवाली के पटाखों का योगदान पांच प्रतिशत होता है। सरकार ने पटाखों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन शेष 87 प्रतिशत का क्या? औद्योगिक प्रदूषण का योगदान 51 प्रतिशत होता है और वाहन यातायात से 27 प्रतिशत प्रदूषण होता है, इन पर बात क्यों नहीं की जा रही है?
आप हमारे सुधि पाठकों को क्या सन्देश देना चाहेंगे?
प्रत्येक जीवित प्राणी प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए कार्य करता है। उस संतुलन को बरकरार रखने का प्रयास करना भी हमारा काम है। जितना हो सके उतने पेड़ लगाएँ, क्योंकि उनके बिना, पृथ्वी पर कोई भविष्य नहीं है।