Guava gardening can give good profit in short time

कम समय में अच्छा मुनाफा दे सकती है अमरूद की बागवानी

नई दिल्ली। अमरूद एक ऐसा फल है जिसकी तुलना उसके गुणों के कारण सेब से की जाती है। अमरूद देश के ज्यादातर हिस्सों में पाया जाता है। अमरूद का उत्पादन देश में सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश में होता है. अमरूद की बागबानी सभी तरह की जमीन पर की जा सकती है।

सामान्यत: अमरूद की बागवानी के लिए गरम और सूखी जलवायु वाले इलाकों में गहरी बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए ज्यादा अच्छी मानी जाती है। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित ऐतिहासिक खुशरूबाग में बना ‘औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र’ अमरूद की न केवल पौध तैयार करता है, बल्कि वहां इच्छुक लोगों को अमरूद की बागबानी का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। वहां के इलाहाबाद सफेदा और सरदार अमरूद खासतौर पर मशहूर हैं। वहां अमरूद की एक और उन्नत किस्म ललित को भी तैयार किया गया है। यह गुलाबी और केसरिया रंग लिए होता है। इस की पैदावार दूसरे अमरूदों के मुकाबले 24 फीसदी ज्यादा होती है। गुलाबी आभा, मुलायम बीज व अधिक मिठास वाले अमरूदों की पैदावार हर कोई वैज्ञानिक तरीके से कर सकता है।

पौधारोपण अमरूद का पेड़ 2 साल बाद ही फल देना शुरू कर देता है। यदि शुरुआत में ही पेड़ की देखरेख अच्छी तरह से हो जाए, तो 30-40 सालों तक अच्छा उत्पादन मिल सकता है। देश में अमरूद के पौधे ज्यादातर बीजों के द्वारा तैयार किए जाते हैं, लेकिन माना जाता है कि इस से पेड़ों में भिन्नता आ जाती है। इसलिए अब वानस्पतिक विधि द्वारा पौधे तैयार किए जाने पर जोर दिया जा रहा है। कलमी अमरूद के पौधे जुलाई, अगस्त व सितंबर महीने में पौध रोपण के लिए मुनासिब माने जाते हैं। सिंचित इलाकों में पौधरोपण फरवरी व मार्च के महीनों में भी किया जा सकता है।

अमरूद के पौधों को 5×5 मीटर या 6×6 मीटर की दूरी पर लगाया जाना ज्यादा लाभकारी होता है। अमरूद के छोटे पेड़ों की सिंचाई अच्छी होनी चाहिए, जिस से कि जहां जड़ें हों, वहां की मिट्टी को नम रखा जा सके. पेड़ बड़े होने के बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। खाद व उर्वरक पौधा लगाते समय प्रति गड्ढा तकरीबन 20 किलोग्राम गोबर की खाद डालनी चाहिए। इस के बाद आगे बताए अनुसार हर साल खाद डालनी चाहिए।

पहले वर्ष : गोबर की खाद 15 किलोग्राम, यूरिया 250 ग्राम, सुपर फास्फेट 375 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 500 ग्राम डालें।

दूसरे वर्ष : गोबर की खाद 30 किलोग्राम, यूरिया 500 ग्राम, सुपर फास्फेट 750 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 200 ग्राम डालें।

तीसरा वर्ष : गोबर की खाद 45 किलोग्राम, यूरिया 750 ग्राम, सुपर फास्फेट 1125 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 300 ग्राम डालें।

चौथे वर्ष : गोबर की खाद 60 किलोग्राम, यूरिया 1050 ग्राम, सुपर फास्फेट 1500 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 400 ग्राम डालें।

पांचवे वर्ष : गोबर की खाद 75 किलोग्राम, यूरिया 1300 ग्राम, सुपर फास्फेट 1875 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 500 ग्राम डालें. ज्यादा अच्छा होगा कि पेड़ की आयु के अनुसार हर पेड़ के लिए खाद को 2 भागों में बराबर बांट लें। इस का आधा भाग जून में व आधा भाग अक्तूबर में तने से 1 मीटर दूर चारों ओर डालने के साथ ही सिंचाई भी कर दें।

फसल में और्गैनिक दवाओं का प्रयोग भी किया जा सकता है। कटाई, छंटाई और सधाई शुरू में पेड़ों को मजबूत ढांचा देने के लिए सधाई की जानी चाहिए। यह देखना चाहिए कि मुख्य तने पर जमीन से लगभग 90 सैंटीमीटर ऊंचाई तक कोई शाखा न हो। इस ऊंचाई पर मुख्य तने से 3 या 4 प्रमुख शाखाएं बढ़ने दी जाती हैं। इस के बाद हर दूसरे या तीसरे साल ऊपर से टहनियों को काटते रहना चाहिए, जिस से पेड़ की ऊंचाई ज्यादा न बढ़े। यदि जड़ में कोई फुटाव निकले, तो उसे भी काटते रहना चाहिए। फसल प्रबंधन व तोड़ाई पेड़ के पूरी तरह तैयार हो जाने के बाद साल में अमरूद की 2 फसलें प्राप्त होती हैं। एक फसल बरसात के दौरान व दूसरी जाड़े के मौसम में प्राप्त होती है।

बरसात के मौसम में ज्यादा उपज प्राप्त होती है, पर इस के फल घटिया होते हैं। छेदक कीट भी उन्हें नुकसान पहुंचा देते हैं। व्यापार के लिहाज से जाड़े की फसल को ज्यादा महत्त्व दिया जाना चाहिए। पेड़ों की देखरेख और समय पर खादपानी देने से ज्यादा पैदावार प्राप्त की जा सकती है। यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि उपज की मात्रा किस्म, जलवायु व पेड़ की उम्र पर निर्भर करती है। पूरी तरह तैयार पेड़ से सीजन में तकरीबन 400 से 600 तक फल प्राप्त हो जाते हैं। अमरूद की तोड़ाई थोड़ी सी डंठल व कुछ पत्तों सहित कैंची से करनी चाहिए। तोड़ाई एकसाथ नहीं, बल्कि 2-3 बार में करनी चाहिए।

आधे पके अमरूदों को तोड़ना ठीक रहता है। प्रमुख रोग अमरूद की फसल में सब से ज्यादा खतरनाक उकठा रोग माना जाता है। एक बार बाग में इस का संक्रमण होने से कुछ सालों में पूरे बाग को नुकसान पहुंच जाता है। ऐसी जगह पर दोबारा अमरूद का बाग नहीं लगाना चाहिए। इस बीमारी से शाखाएं और टहनियां एकएक कर के ऊपरी भाग से सूखने लगती हैं और नीचे की तरफ सूखती चली जाती हैं। एक समय ऐसा भी आता है, जब पूरा पेड़ ही सूख जाता है. इस बीमारी से बचने के लिए ये उपाय जरूर करने चाहिए :

* जैसे ही पेड़ में रोग के लक्षण दिखाई दें, तो उस पेड़ को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।

* बाग को साफसुथरा रखें, खरपतवार न रहने दें।

* बाग में ज्यादा पानी होने पर उस की निकासी का इंतजाम करें।

* हरी और कार्बनिक खाद का इस्तेमाल करें. संक्रमण अमरूद के बाग में फल गलन या टहनीमार रोग का संक्रमण भी हो जाता है। नतीजतन, बनते हुए फल छोटे, कड़े व काले रंग के हो जाते हैं। इस रोग के सब से ज्यादा लक्षण बारिश के मौसम में पकते हुए फलों पर दिखाई पड़ते हैं। फल पकने वाली अवस्था में फलों के ऊपर गोलाकार धब्बे पड़ जाते हैं और बाद में बीच में धंसे हुए स्थान पर नारंगी रंग की फफूंद हो जाती है। डालियों पर संक्रमण होने पर डालियां पीछे से सूखने लगती हैं।

इस रोग के होने पर डालियों को काट कर 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड के घोल का छिड़काव करना चाहिए। फल लगने के दौरान 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें। कीट नियंत्रण बरसाती फसल पर फलमक्खियां सब से ज्यादा मंडराती हैं। मादा मक्खी फलों में छेद कर देती है और छिलके के नीचे अंडे देती है। इस के इलाज का तरीका यही है कि मक्खी से ग्रसित फलों को जमा कर के नष्ट कर दें।

मक्खियों को मारने के लिए 500 लिटर मैलाथियान 50 ईसी, 5 किलोग्राम गुड़ या चीनी को 500 मिलीलिटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें। अगर प्रकोप बना रहता है, तो छिड़काव 7 से 10 दिनों के अंतर पर दोहराएं. छाल सूंड़ी अमरूद के पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाला एक और कीट है, छाल खाने वाली सूंड़ी. यह कीट आमतौर पर दिखाई नहीं देता, पर जहां पर टहनियां अलग होती हैं, वहां पर इस का मल व लकड़ी का बुरादा जाल के रूप में दिखाई देता है।

बरसात के बाद ही ज्यादातर पेड़ों के ऊपर से पत्तियां पीली होने लगती हैं व पेड़ों की शाखाएं एक के बाद एक सूखने लगती हैं। इसलिए रखरखाव किया जाना चाहिए। दिसंबर से फरवरी माह के दौरान पेड़ों में काटछांट करने के बाद पर्याप्त मात्रा में नए कल्ले बनते हैं। इन कल्लों के फैलाव व विकास के लिए मईजून माह में प्रबंधन किया जाना चाहिए। इस से जाड़े में फसल अच्छी होती है। इसी प्रकार मई माह में काटछांट कर ठीक किए गए पेड़ों से निकलने वाले कल्लों का प्रबंधन अक्तूबर माह में किया जाना चाहिए। ऐसा करने से बरसात में फसल अच्छी होती है।