Bhai Kamalanand, former Secretary to the Government of India, has written a letter to YP Singh,

भाई कमलानन्द ने INA के अध्यक्ष वाईपी सिंह को लिखा पत्र, कहा नर्सरी कारोबार में अपार संभावनाएं

नई दिल्ली। भारत सरकार के पूर्व सचिव भाई कमलानन्द ने इंडियन नर्सरीमेन ऐसोसिएशन के अध्यक्ष वाईपी सिंह को पत्र लिखा है। पूर्व सचिव भाई कमलानन्द ने अपने पत्र में इंडियन नर्सरीमेन ऐसोसिएशन द्रारा चलाए जा रही पर्यावरण संरक्षण अभियान की सराहना की हैं। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि इंडियन नर्सरीमेन ऐसोसिएशन एक ऐसी संस्था है जो सरकार से बिना कोई अनुदान लिए लाखों लोगों को स्वरोजगार दे रहा है। जो अपने आप में सराहनीय प्रयास है।

भाई कमलानन्द ने अपने पत्र में इंडियन नर्सरीमेन ऐसोसिएशन के अध्यक्ष वाईपी सिंह के प्रति आभार जताते हुए कहा है कि, जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और हरियाली वास्तव में उपयोगी है। एक पेड़ अपने जीवनकाल में न जाने कितने दूसरे जीवों और पर्यावरण को भी बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इंडियन नर्सरीमेन ऐसोसिएशन लागातार कई सालों से बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देते आ रहा हैं।

नर्सरी कारोबार की संभावनाएं तेजी से बढ़ रही है

भाई कमलानन्द अपने पत्र में कहा है कि नर्सरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इंडियन नर्सरीमेन ऐसोसिएशन की उपलब्धियां सराहनीय रही है। मैं खुद इस संस्था के साथ चार सालों से जुड़ा हूं। उन्होंने कहा कि आज के बदलते समय में औषधीय पौधों की कीमत कई सालों से लगातार ऊपर जा रहा है, लेकिन कोरोना के दौर में यह मार्केट सबसे ऊपर निकल गया है। औषधीय पौधों की मांग लगातार बढ़ रही है। गार्डन को हरा-भरा रखने के लिए और पर्यावरण संरक्षण के लिए  फल-फूल, सजावटी पौधों, औषधीय व सुगंधीय पौधों के लिए  नर्सरी  कारोबार की संभावनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में नर्सरी खोलना काफी लाभदायक हो चुका है। नर्सरी में पौधे तैयार करना, टिश्यु कल्चर लैब बनाकर लाखों पौधे तैयार करना, लॉन की घास, गमलों की खाद और पैकिंग सामग्री बेचने जैसे कामों को रोजगार के अच्छे अवसर के तौर पर देखा जा सकता है। बता दें कि  इंडियन नर्सरी ऐसासिएशन पर्यावरण संरक्षण के साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कई सारे अभियान पर काम कर रहा है।  इंडियन नर्सरी ऐसासिएशन और पंचगव्य विद्यापीठम् दोनों आपस में मिलकर पिछड़े ईलाकों और पलायन के कारण खाली हो चुके गांवों में देशी गाय को जोड़ते हुए पर्यावरणीय विकास का एक ढांचा बनाकर रोजगार  का नया ढांचा तैयार कर सकता है।